सुभाष चंद्र बोस केवल राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि वह योद्धा थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता को हथियारों और संगठन के बल पर हासिल करने का सपना देखा। 1943 में बनी आज़ाद हिंद सरकार उसी सपने की सशक्त अभिव्यक्ति थी। जब जापान ने अंडमान-निकोबार द्वीप भारतीय प्रशासन को सौंपे, तो नेताजी ने इन्हें “स्वतंत्र भारत” की पहली भूमि के रूप में देखा।
ध्वजारोहण: स्वतंत्रता का पहला सार्वजनिक प्रतीक
30 दिसंबर 1943 को पोर्ट ब्लेयर में नेताजी ने भारतीय ध्वज फहराया। यह केवल एक समारोह नहीं था—यह संदेश था कि भारत की आत्मा अब गुलामी से समझौता नहीं करेगी। इस ध्वजारोहण के साथ उन्होंने इन द्वीपों को ‘शहीद द्वीप’ और ‘स्वराज द्वीप’ नाम दिया—जो आज भी वीरता की स्मृति बने हुए हैं।
विश्व को भेजा गया साहसी संदेश
उस समय भारत अब भी ब्रिटिश शासन के अधीन था, लेकिन इस ऐतिहासिक कार्यक्रम ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर घोषणा कर दी कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल आंदोलन नहीं—एक संगठित सरकार और सेना का रूप ले चुका है। भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का मनोबल भी इस अवसर से कई गुना बढ़ गया।
आज भी जीवित है उस दिन का महत्व
यह तिथि हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता केवल कागज़ी घोषणा नहीं, बल्कि त्याग, साहस और अटूट विश्वास का परिणाम है। नेताजी का यह कदम स्वतंत्र भारत के निर्माण की दिशा में उठाया गया ऐतिहासिक और निर्णायक पड़ाव था—जो हर भारतीय के हृदय में प्रेरणा की लौ जगाता है।
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