सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो चुकी है। आज अदालत इस मामले में अंतरिम आदेश भी जारी कर सकती है। चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने 15 मई को सुनवाई को 20 मई तक स्थगित करते हुए कहा था कि वह तीन प्रमुख मुद्दों पर दलीलें सुनेगी। इनमें ‘वक्फ बाई यूजर’ या ‘वक्फ बाई डीड’ के तहत घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार, राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना, और कलेक्टर द्वारा सरकारी भूमि की जांच से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
पहला मुद्दा: वक्फ बाय यूजर
सुप्रीम कोर्ट में पहला मुद्दा उन संपत्तियों को वक्फ के रूप में घोषित करने से जुड़ा है जिन्हें या तो "वक्फ बाय यूजर" या "वक्फ बाय डीड" के माध्यम से वक्फ घोषित किया गया था। "वक्फ बाय यूजर" का मतलब है कि ऐसी संपत्तियां जो लंबे समय से वक्फ संपत्ति के रूप में इस्तेमाल हो रही हैं, भले ही कोई लिखित वक्फ डीड या औपचारिक दस्तावेज न हो। ऐसी संपत्तियों को लंबे समय से इस्तेमाल होने के आधार पर वक्फ माना जाता है।
दूसरा मुद्दा: वक्फ का ढांचा
याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि पदेन सदस्यों के अलावा, केवल मुसलमानों को ही इन निकायों का प्रबंधन करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड और परिषद में सिर्फ मुस्लिम सदस्य होने चाहिए।
तीसरा मुद्दा: कलेक्टर की जांच
तीसरा तर्क एक प्रावधान है जिसमें कहा गया है कि यदि कलेक्टर जांच करता है कि कोई संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो ऐसी संपत्ति को जांच के दौरान वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। मतलब, अगर कलेक्टर को शक है कि कोई जमीन सरकारी है, तो जांच होने तक उसे वक्फ की जमीन नहीं माना जाएगा।
Comments (0)