वास्तव में नवरात्र का आगमन ऐसी ऋतु में होता है जब मानसून की समाप्ति पर मानव शरीर संक्रमण काल से गुजर रहा होता है। वर्षा ऋतु में तमाम तरह के बैक्टीरिया पनपते हैं और रोगों के वाहक बनते हैं। इस मौसम में मीठी-मीठी सर्दी दस्तक देने लगती है। शरीर ठंड सहने के लिये तैयार हो रहा होता है। मौसम के इस संधि काल में नवरात्र का आगमन जहां सेहत का पर्व है वहीं इसमें बेटी के सम्मान का गहरा संदेश छिपा है। यद्यपि व्रत विशुद्ध सेहत समृद्धि का उपक्रम है।
आकाश तत्व को संबल
योग व आयुर्वेद में आकाश तत्व को संबल देने के लिये उपवास पर बल दिया जाता है। योगी कहते हैं कि एक दिन में एक बार का भोजन जीवनदायी है। दूसरी बार का भोजन बलवर्धक है। तीसरी बार का भोजन रोग बढ़ाने वाला है तो चौथा भोजन मारक है। सही मायनों में उपवास रोग-मुक्ति का प्रबल साधन है। उपवास काल में संपूर्ण जीवन शक्ति रोग के कारकों को दूर करने में लग जाती है। जिससे शरीर निरोगी और शक्तिशाली बनता है। उपवास शब्द उप (समीप) + वास (निवास करना) से मिलकर बना है यानी स्व में स्थित होना। दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर व आत्मशोधन से स्वास्थ्य प्राप्ति का सुगम साधन है व्रत। इसे यूं भी कह सकते हैं कि व्रत शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वच्छता के लिये अचूक उपाय है
रोग मुक्ति का प्रबल साधन
चिकित्सीय दृष्टि से कहें तो उपवास रोग मुक्ति का प्रबल साधन है। उपवास काल में संपूर्ण जीवन शक्ति केवल रोग दूर करने में लग जाती है। जिससे शरीर निरोगी और शक्तिशाली बनता है। दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर व आत्मशोधन से स्वास्थ्य प्राप्ति का प्रयत्न ही उपवास है। प्राकृतिक चिकित्सा की दृष्टि से कहें तो भोजन का पूर्ण रूप से त्याग करते हुए केवल जल पर रहकर पेट को विश्राम देना, उपवास कहलाता है। उपवास से न केवल शरीर ही नहीं, बल्कि मन और आत्मा के तल पर निर्मलता का अनुभव होता है।
पाचन संस्थान को विश्राम
पाचन संस्थान को विश्राम देने वाला व्रत शारीरिक-मानसिक शुद्धि का साधन भी है। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगावस्था में कुछ खाना विष और उपवास अमृत के समान है। यह टकसाली सत्य है कि बीमार होने पर भूख स्वभावत: कम हो जाती है। दरअसल, उपवास काल में जीवन शक्ति रोग उपचार में लग जाती है। उपवास से स्वास्थ्य में निरंतर सुधार होता है।
व्रत में सावधानी
यदि हम बिना चिकित्सक की सलाह के उपवास करते हैं तो उसके लाभ संदिग्ध हो सकते हैं। वास्तव में बिना तैयारी और उपवास कला का ज्ञान पाये बिना दीर्घकालीन उपवास करना अनुचित है। वहीं दूसरी ओर उपचार की दृष्टि से उपवास किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करना चाहिए।
व्रत खोलने में सतर्कता और नियम
सही अर्थों में उपवास खोलना उपवास करने से ज्यादा कठिन कार्य है। इसके लिए कठोर आत्मसंयम होना जरूरी है। दरअसल, उपवास के समय पाचनशक्ति अधिक दुर्बल हो जाती है। अत: उपवास खोलते समय सावधानी के साथ अत्यधिक हल्का व सुपाच्य भोजन कम मात्रा में लिया जाना चाहिए। उपवास खोलने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले जल के समान तरल पदार्थ लेने चाहिए। इसमें फलों का रस या सब्जियों का रस यानी सूप लिया जा सकता है। कुछ दिनों तक यह क्रम जारी रखने के बाद कुछ तरल भोज्य पदार्थ जैसे खिचड़ी कम मात्रा में लेनी चाहिए। फिर धीरे-धीरे उसकी मात्रा और ठोसपन को बढ़ाना चाहिए। इसी क्रम को अपनाते हुए साधारण भोजन पर आना चाहिए।
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