लिट्टी-चोखा बिहार की संस्कृति और पहचान का प्रतीक है। दरअसल, इसका स्वाद इतना खास होता है कि, जो भी इसे एक बार खाता है, उसका दीवाना हो जाता है। वहीं समय के साथ लिट्टी-चोखा ने कई बदलाव देखे हैं, लेकिन इसका अनोखा स्वाद अब भी लोगों के दिलों पर राज करता है।
लिट्टी-चोखा का इतिहास मगध साम्राज्य से जुड़ा
बता दें कि, लिट्टी-चोखा का इतिहास काफी पुराना है। माना जाता है कि, इसकी जड़ें प्राचीन मगध साम्राज्य से जुड़ी हैं। यह साम्राज्य बिहार और झारखंड के कुछ हिस्सों पर शासन करता था। उस समय के सैनिक इसे अपने साथ युद्ध के मैदान में ले जाते थे। लिट्टी को आग पर सेंककर आसानी से तैयार किया जा सकता था, और इसके साथ सादा चोखा खाने से उन्हें पौष्टिक भोजन मिल जाता था।
सैनिकों का आदर्श भोजन था लिट्टी-चोखा
लिट्टी-चोखा उस दौर में सैनिकों का प्रमुख भोजन था क्योंकि इसे बिना ज्यादा तैयारी के आसानी से पकाया जा सकता था। बता दें कि, इसके लिए सिर्फ गेहूं के आटे और सत्तू की जरूरत होती थी। चोखा बनाने के लिए आलू, बैंगन और टमाटर जैसी सामान्य सब्जियों का उपयोग होता था, जो आग में भूनकर तैयार किया जाता था। यह भोजन न केवल पौष्टिक था, बल्कि इसे लंबे समय तक सुरक्षित भी रखा जा सकता था।
लिट्टी-चोखा का बदलता स्वरूप
समय के साथ लिट्टी-चोखा का स्वाद और तरीके बदलते रहे, लेकिन इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई। मुगल काल में इस व्यंजन को शाही रसोइयों ने और भी खास बना दिया। आज यह व्यंजन न केवल बिहार और झारखंड में, बल्कि पूरे भारत में लोकप्रिय है। रेस्तरां से लेकर स्ट्रीट फूड स्टॉल तक, लिट्टी-चोखा हर जगह आसानी से मिल जाता है। यह व्यंजन बिहार की पहचान और गौरव का प्रतीक बन चुका है।
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