बांग्लादेश में एक दम से हालात बिगड़ गए हैं और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के शेख हसीना के खिलाफ वहां की जनता भी सड़कों पर उतर आई है। स्थिति यह बन गई है कि हिंसा चरम सीमा पर है और बिगड़े हालातो को देख शेख हसीना को देश छोड़ कर भागना पड़ा है। यह बताया जा रहा है कि शेख हसीना के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ हो सकता है। ढाका में शांति बहाल होना भारत के हित में है। भारत बांग्लादेश में सत्ता में आने वाली किसी भी सरकार के साथ मिलकर काम करेगा। दोनों देशों के बीच लोगों के आपसी रिश्ते बहुत मजबूत हैं। बांग्लादेश में मौजूदा राजनीतिक संकट के पीछे आर्थिक कारण और अवसरवादी ताकतें का होना लगता है।
आर्थिक संकट से जूझ रहा बांग्लादेश -
राजनीतिक विचारकों की मानें तो फौरी तौर पर देखने में यह लगता है कि छात्रों द्वारा आरक्षण का जो मुद्दा उठाया गया है वह तो केवल दिखावा मात्र है। इसके पीछे कई आर्थिक कारण भी काम कर रहे हैं। COVID-19 ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है। यूक्रेन युद्ध के कारण ईंधन, भोजन और उर्वरकों जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है, जिन्हें बांग्लादेश आयात करता है। उनके भुगतान संतुलन की स्थिति बहुत खराब हो गई है। मुद्रास्फीति 17% से 20% तक बढ़ गई है। यह सब अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां लोग, खासकर युवा, सड़कों पर अपनी हताशा व्यक्त कर रहे हैं।
अशांत पानी में मछली पकड़ रहीं अवसरवादी ताकतें -
जहां तक यह भी कहा जा रहा है कि विपक्षी BNP हो या जमात-ए-इस्लामी, जो एक कट्टरपंथी, पाकिस्तान समर्थक इस्लामी समूह है और सड़कों पर बहुत सक्रिय है, वे विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो गए हैं और वे इसमें हिंसा लाए हैं। आप उन विदेशी ताकतों की संलिप्तता से इनकार नहीं कर सकते हैं जो बांग्लादेश के हितों और स्पष्ट रूप से, हमारी सुरक्षा हितों के भी खिलाफ हैं। आप इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते हैं कि कुछ ताकतें अशांत पानी में मछली पकड़ रही हैं।
Written by- Dillep pal
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