RIC की सबसे बड़ी शक्ति इसकी विशालकाय जनसंख्या, आर्थिक ताकत और इसकी जियोग्राफी है। चीन और भारत, दुनिया के दो सबसे बड़े और तेजी से डेवलप होते देशों में शामिल हैं, जबकि रूस प्राकृतिक संसाधनों और ऊर्जा का भंडार है। RIC देशों की कुल आबादी तीन अरब से ज्यादा होगी
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चीन में एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और चीन को यूक्रेन युद्ध में शांति लाने की कोशिशों के लिए धन्यवाद दिया है। जबकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने टैरिफ को लेकर अमेरिका पर निशाना साधा है और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईरान में चाबहार पोर्ट से कारोबार के लिए एससीओ देशों को आमंत्रित किया है। तीनों नेताओं के बयान में एक बात जो कॉमन है, वो ये कि अमेरिका हर जगह मौजूद है। भारत ने ईरान में चाबहार पोर्ट बनवाया है और ईरान और इजरायल जून में एक युद्ध में फंसे थे और अमेरिका ने भी ईरान पर आक्रमण किया था।
इसके अलावा एससीओ शिखर सम्मेलन की एक और खास बात, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा, वो था प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आपसी बातचीत। जिसके बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस तस्वीर के आधार पर यह कहा जा सकता है कि रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिकोण बनाने का समय आ गया है? हालांकि RIC बनाने का विचार कोई नया नहीं है और पिछले 30 सालों से अलग अलग मंचों पर इसकी चर्चा होती रही है, लेकिन भारत इससे परहेज करता रहा है।
क्या RIC बनाने का वक्त आ गया?
19वीं सदी के फ्रांसीसी कवि और उपन्यासकार विक्टर ह्यूगो की एक प्रसिद्ध बात का जिक्र होना जरूरी हो गया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि "जिस विचार का समय आ गया हो, उसे दुनिया की कोई भी ताकत नहीं रोक सकती।" रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रीमाकोव ने RIC के विचार को 1990 के दशक में लोकप्रिय बनाया था। उन्होंने कहा था कि अगर रूस, भारत और चीन, भले ही आपसी मतभेद रखते हों, लेकिन एक साथ मिलकर बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को स्थापित कर सकते हैं और अमेरिका के नेतृत्व वाले एकाधिकार को चुनौती दे सकते हैं।
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