वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली के दूसरे भाव (धन का भाव), ग्यारहवें भाव (लाभ का भाव) और नवम भाव (भाग्य का भाव) का विशेष महत्व है, क्योंकि इन तीनों भावों से धन के योग का निर्माण होता है।
कुंडली में धन का योग विभिन्न ग्रहों, भावों और उनकी स्थिति के आधार पर बनता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली के दूसरे भाव (धन का भाव), ग्यारहवें भाव (लाभ का भाव) और नवम भाव (भाग्य का भाव) का विशेष महत्व है, क्योंकि इन तीनों भावों से धन के योग का निर्माण होता है। जब इन भावों के स्वामी ग्रह शुभ स्थिति में होते हैं और आपस में युति, दृष्टि या स्थिति के माध्यम से शुभ योग बनाते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में धन और समृद्धि का वास होता है। इस प्रकार के धन योग व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में धन की कमी का सामना नहीं करने देते।
धन योग के बनने का कारण कई ग्रहों के बीच का तालमेल और उनके मध्य शुभ संबंध हो सकते हैं। कुछ ग्रहों की विशेष युति और दृष्टि से बनने वाले योगों को धन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में कुल 32 प्रकार के योग माने जाते हैं, जिनमें से कुछ को धन के योग के रूप में पहचाना जाता है। इन योगों में राजयोग भी होते हैं, जो विशेष रूप से व्यक्ति को अपार धन और समृद्धि प्रदान करते हैं।
महालक्ष्मी योग
अगर कुंडली के लग्न या चंद्रमा से नवम भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि या मित्र राशि में स्थित हो, तो यह महालक्ष्मी योग बनता है। यह योग व्यक्ति को अपार धन और समृद्धि का आशीर्वाद देता है, और उसकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है।
गजकेसरी योग
गजकेसरी योग तब बनता है जब चंद्रमा और गुरु केंद्र भावों (पहला, चौथा, सातवां और दसवां) में एक साथ स्थित होते हैं या एक-दूसरे से दृष्टि करते हैं। यह योग धन, यश, प्रतिष्ठा और सामाजिक सम्मान प्रदान करता है। इसके द्वारा व्यक्ति को स्थायी धन प्राप्ति का मार्ग मिलता है।
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