देवी कुष्मांडा का रूप अत्यन्त सौम्य और दिव्य होता है। वे चार भुजाओं वाली एक सुंदर देवी के रूप में पूजी जाती हैं। उनके एक हाथ में कमल का फूल, दूसरे हाथ में धनुष-बाण, तीसरे हाथ में अमृत कलश और चौथे हाथ में जल की छोटी कलश होती है। वे एक सिंह पर सवार होती हैं और उनके चेहरे की चमक सम्पूर्ण ब्रह्मांड को आलोकित करती है।
देवी कुष्मांडा का महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि वह ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के साथ मिलकर इस संसार की सृष्टि, पालन और संहार करती हैं। वे ब्रह्मांड के हर कण में अपने उष्मा (ऊर्जा) से प्रकट होती हैं और उसे संतुलित करती हैं। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
मां कुष्मांडा की जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मांड में घना अंधकार था और कोई भी जीव या प्राणी अस्तित्व में नहीं था तब सृष्टि की रचना के लिए किसी के पास कोई शक्ति नहीं थी। तभी देवी कुष्मांडा ने स्वयं को ब्रह्मांड के केंद्र में प्रकट किया और अपने “कुष्म” (अंडा) से सृष्टि की रचना की। देवी का रूप बहुत दिव्य था और उनका शरीर सूर्य के समान तेजस्वी था।
देवी कुष्मांडा की पूजा
देवी कुष्मांडा के शरीर से उत्पन्न ऊर्जा से यह पूरा ब्रह्मांड अस्तित्व में आया। देवी कुष्मांडा को ताजे फूलों, फल, मिठाई, नारियल और घी के दीपक अर्पित किए जाते हैं। गुलाब के फूल और जले हुए घी का दीपक उनकी पूजा में विशेष रूप से प्रिय माना जाता है। पूजा करने से भक्तों को मानसिक शांति, समृद्धि, और साहस मिलता है। वे अपने भक्तों को हर कष्ट और दुख से मुक्ति प्रदान करती हैं। देवी कुष्मांडा की उपासना से व्यक्ति की इच्छाएं पूरी होती हैं और उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
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