भारतीय पंचांग और धार्मिक परंपराओं में समय का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शुभ कार्यों — जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण या यज्ञ आदि — के लिए केवल दिन और तिथि ही नहीं, बल्कि "मुहूर्त", "नक्षत्र", "योग", और "करण" भी ध्यान में रखे जाते हैं। इन्हीं में से एक 'करण' है "भद्रा", जिसे विशेष रूप से अशुभ माना जाता है।
भारतीय पंचांग और धार्मिक परंपराओं में समय का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शुभ कार्यों — जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण या यज्ञ आदि — के लिए केवल दिन और तिथि ही नहीं, बल्कि "मुहूर्त", "नक्षत्र", "योग", और "करण" भी ध्यान में रखे जाते हैं। इन्हीं में से एक 'करण' है "भद्रा", जिसे विशेष रूप से अशुभ माना जाता है।
तो आइए जानें — भद्रा क्या है, इसका धार्मिक और खगोलीय महत्व क्या है, और क्यों इसे शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है?
भद्रा क्या है?
'भद्रा' भारतीय वैदिक पंचांग के अनुसार 11 करणों में से एक है। जब चंद्रमा और सूर्य विशेष ग्रह स्थिति में होते हैं, तब कुछ विशिष्ट कालखंडों में भद्रा का आगमन होता है। यह काल ‘भद्राकाल’ कहलाता है। पंचांग में इसे ‘विशेष अशुभ समय’ के रूप में चिन्हित किया जाता है।
भद्रा देवी को कुछ ग्रंथों में "यमराज की बहन" भी कहा गया है। मान्यता है कि जैसे यमराज मृत्यु और विध्वंस के प्रतीक हैं, वैसे ही भद्रा भी विघ्न, अशांति और अवरोध का कारक समय है। इस समय कोई भी शुभ कार्य आरंभ करना निषेध माना गया है।
धार्मिक कार्यों में भद्रा क्यों मानी जाती है अशुभ?
1. शास्त्रीय निषेध
धर्मशास्त्रों और ज्योतिष ग्रंथों जैसे मुहूर्त चिंतामणि और कल्पद्रुम में स्पष्ट रूप से उल्लेख मिलता है कि भद्रा काल में विवाह, यात्रा, गृह प्रवेश, यज्ञ, देव प्रतिष्ठा जैसे शुभ कार्य वर्जित हैं। यह समय विघ्नदायी माना गया है, जिससे कार्य में पूर्णता नहीं आती।
2. ऊर्जा और प्रभाव का सिद्धांत
ज्योतिषीय दृष्टि से भद्रा काल में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पृथ्वी पर अधिक होता है। यह काल ‘विघ्नकारी स्पंदन’ से युक्त माना गया है, जिससे आरंभ किए गए कार्यों में रुकावट, कलह या अपूर्णता देखी जाती है।
3. पौराणिक कथाएँ और जनमान्यता
पौराणिक संदर्भों में बताया गया है कि भगवान श्रीराम ने रावण का वध भी भद्राकाल समाप्त होने के बाद ही किया था। इसलिए दशहरा और अन्य पर्वों पर भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है। जनमान्यता है कि भद्रा में शुरू किया गया कोई भी कार्य या यात्रा, विशेष रूप से विवाह, अनिष्टकारी हो सकता है।
4. धार्मिक अनुशासन और लोक अनुभव
हज़ारों वर्षों के परंपरागत अनुभव और ज्योतिष गणनाओं से यह स्थापित हुआ है कि भद्रा में शुभारंभित कार्यों के फल अपेक्षित नहीं मिलते। इसलिए इसे धार्मिक अनुशासन के रूप में मान्यता दी गई है।
किन कार्यों में भद्रा वर्जित नहीं मानी जाती?
हालाँकि अधिकांश मांगलिक कार्य भद्राकाल में वर्जित माने जाते हैं, परंतु कुछ विशेष कर्म — जैसे मृत्युपरांत कर्म, श्राद्ध, तंत्र-साधना, शत्रु विजय साधनाएँ, उग्र देवताओं की आराधना, वाममार्गी अनुष्ठान — भद्रा काल में भी किए जा सकते हैं। कुछ साधक इस काल को विशिष्ट रूप से साधना हेतु प्रयोग करते हैं।
भद्रा काल की पहचान कैसे करें?
हर दिन के पंचांग में भद्रा का समय स्पष्ट रूप से अंकित होता है। आजकल मोबाइल ऐप्स और पंचांग वेबसाइटों पर भी ‘भद्राकाल’, ‘भद्रा मुख’ और ‘भद्रा पुच्छ’ के समय देखे जा सकते हैं।
यदि भद्रा स्वर्ग या पृथ्वी लोक में मानी जाती है तो वह कार्यों के लिए अधिक हानिकारक मानी जाती है, जबकि पाताल लोक की भद्रा का प्रभाव कम होता है।
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