हिंदू धर्म में देवी दुर्गा के नौ रूपों का अत्यधिक महत्व है। इन नौ रूपों में से एक है स्कंदमाता। उन्हें ‘स्कंद की माता’ भी कहा जाता है, क्योंकि ये भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं। स्कंदमाता की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान होती है, जहां उन्हें 5वें दिन पूजा जाता है। स्कंदमाता की पूजा से भक्तों को शक्ति, समृद्धि, सुख और शांति प्राप्त होती है।
स्कंदमाता का रूप
स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत भव्य और सौम्य होता है। वे अक्सर अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को गोद में लिए हुए दिखाई जाती हैं। आभूषणों से सुसज्जित मां का चेहरा दिव्य एवं शांत होता है। वे एक शेर या सिंह पर बैठी होती हैं, जो उनके साथ शक्ति और बल का प्रतीक है। स्कंदमाता के 4 हाथ होते हैं- दो हाथों में वे अपने पुत्र स्कंद को पकड़े रहती हैं। अन्य दो हाथों में कमल और शंख धारण करती हैं। इन हाथों में धारण किए गए ये वस्त्र और उपकरण शक्ति, ज्ञान और समृद्धि के प्रतीक होते हैं।
स्कंदमाता की पूजा का महत्व
स्कंदमाता की पूजा का महत्व विशेष रूप से नवरात्रि के 5वें दिन होता है, जो भक्तों के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। इस दिन देवी की उपासना से मानसिक शांति, आत्मविश्वास और कार्यों में सफलता मिलती है। स्कंदमाता की उपासना से न केवल शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है, बल्कि उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि और समृद्धि का वास होता है। पुराणों में देवी के इस स्वरुप को कुमार कहकर संबोधित किया जाता है। उनका जन्म अत्याचारी राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ था।
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