सावन मास को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम अवसर माना जाता है। इस पवित्र मास में जल, वायु, वातावरण और चेतना – सब कुछ शिवमय हो जाता है। पूज्य प्रेमानंद महाराज ने अनेक बार श्रद्धालुओं को सावन में शिव भक्ति के सच्चे स्वरूप की सरल व्याख्या दी है।
सावन मास को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम अवसर माना जाता है। इस पवित्र मास में जल, वायु, वातावरण और चेतना – सब कुछ शिवमय हो जाता है। पूज्य प्रेमानंद महाराज ने अनेक बार श्रद्धालुओं को सावन में शिव भक्ति के सच्चे स्वरूप की सरल व्याख्या दी है। उनके अनुसार शिव को प्रसन्न करने के लिए न तो भारी पूजन सामग्री की आवश्यकता है, न ही किसी विशेष तामझाम की — केवल सच्चा भाव, आचरण की पवित्रता और भक्ति का समर्पण ही पर्याप्त है।
प्रेमानंद महाराज द्वारा बताए गए सावन के पाँच दिव्य सूत्र
शिव भाव में बसते हैं, प्रदर्शन में नहीं
प्रेमानंद महाराज कहते हैं – "शिव हृदय में बैठते हैं, मन के भावों में रमे रहते हैं।" यदि मन में सच्ची श्रद्धा हो और हृदय से शिव का नाम लिया जाए, तो वह कहीं भी सुनते हैं। 'ॐ नमः शिवाय' का जाप प्रेम से करना ही शिव को सबसे प्रिय है।
बिल्वपत्र, जल और भक्ति – यही सच्चा पूजन
सावन में प्रतिदिन शिवलिंग पर शुद्ध जल, बिल्वपत्र और यदि संभव हो तो गौ दुग्ध अर्पित करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। प्रेमानंद जी बताते हैं कि इन छोटे-छोटे उपायों से ही शिव अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं, यदि उसमें सच्चा प्रेम और नियम हो।
सावन का संयम – शिव की सच्ची आराधना
सावन का मास केवल बाह्य पूजा नहीं, बल्कि आत्म संयम का भी काल है। पूज्य महाराज बार-बार समझाते हैं – “शिव की पूजा तब सफल होती है जब हमारी वाणी, आहार और विचार पवित्र हों।” क्रोध, वासना, हिंसा और आलस्य जैसे दोषों से दूर रहना, शिव भक्ति का ही अंग है।
एकांत साधना – आत्मा से शिव का मिलन
प्रेमानंद महाराज कहते हैं – "यदि तुम एकांत में बैठकर शिव से मन ही मन बात करो, तो वह उसी क्षण सुनते हैं।" इस सावन में प्रतिदिन कुछ समय एकांत में बैठकर शिव का स्मरण, ध्यान और नामजप करें – यही आत्मा और परमात्मा का साक्षात्कार है।
शिव हर पीड़ित में हैं – सेवा ही सबसे बड़ी पूजा
महाराज जी के अनुसार "सच्चा शिव वह नहीं जो पत्थर में है, सच्चा शिव वह है जो भूखे, पीड़ित, दुखी और असहाय में छिपा है।" किसी भूखे को अन्न देना, रोगी की सेवा करना या किसी दुखी को स्नेह देना – यही शिव भक्ति का वास्तविक स्वरूप है।
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