हरियाली अमावस्या, जिसे श्रावण अमावस्या भी कहा जाता है, सावन माह के बहुत ही पावन और ऊर्जा-समृद्ध कालखंड में आती है। इस दिन प्रकृति की आराधना, विशेष रूप से वृक्षों की पूजा का विशेष महत्व है।
हरियाली अमावस्या, जिसे श्रावण अमावस्या भी कहा जाता है, सावन माह के बहुत ही पावन और ऊर्जा-समृद्ध कालखंड में आती है। इस दिन प्रकृति की आराधना, विशेष रूप से वृक्षों की पूजा का विशेष महत्व है। यह परंपरा केवल पर्यावरणीय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और पौराणिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत गूढ़ और महत्वपूर्ण मानी जाती है। आइए जानते हैं इस परंपरा के पीछे छिपी गहराई, शिव-पार्वती से जुड़ी पौराणिक कथा और इस दिन से जुड़े आध्यात्मिक महत्व के बारे में।
पौराणिक कथा
हरियाली अमावस्या पर वृक्ष पूजा का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से भी जुड़ा है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर ध्यान में लीन थे। उसी समय, माता पार्वती उनसे मिलने के लिए आईं, लेकिन शिवजी ने अपने ध्यान में विघ्न न डालने के लिए उन्हें प्रतीक्षा करने को कहा। माता पार्वती कुछ समय तो शांत बैठी रहीं, लेकिन जब शिवजी ने ध्यान नहीं तोड़ा तो वे चिंतित हो गईं और सोचने लगीं कि क्या शिवजी उन्हें भूल गए हैं। इसी दौरान, उन्होंने देखा कि एक वृक्ष के नीचे एक ऋषि तपस्या कर रहे थे और उनके ऊपर एक चिड़िया ने अपना घोंसला बनाया था। चिड़िया के बच्चे अभी छोटे थे और उनकी मां उन्हें भोजन लाने के लिए बाहर गई थी। अचानक तेज हवा चलने लगी और बारिश भी आने वाली थी। माता पार्वती ने देखा कि ऋषि अपने तप में लीन थे, लेकिन चिड़िया के बच्चे असुरक्षित थे। उन्होंने सोचा कि यदि वे कुछ नहीं करेंगी तो चिड़िया के बच्चे बारिश में भीग जाएंगे और उन्हें ठंड लग जाएगी।
माता पार्वती ने एक पत्ती का रूप धारण कर लिया और उस चिड़िया के घोंसले के ऊपर गिर गईं, ताकि घोंसला बारिश से बच जाए। जब चिड़िया लौटी तो उसने देखा कि उसका घोंसला सुरक्षित है और उसके बच्चे भी ठीक हैं। वह यह देखकर बहुत प्रसन्न हुई। जब शिवजी का ध्यान टूटा तो उन्होंने माता पार्वती को ढूंढना शुरू किया और उन्हें एक पत्ती के रूप में पेड़ पर देखा। शिवजी ने उनसे पूछा कि वे पत्ती क्यों बन गईं? तब माता पार्वती ने उन्हें पूरी घटना बताई और कहा कि उन्होंने असहाय बच्चों की मदद करने के लिए ऐसा किया। शिवजी माता पार्वती के इस काम से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि जिस प्रकार उन्होंने जीवों की रक्षा के लिए एक वृक्ष का आश्रय लिया, उसी प्रकार जो भी व्यक्ति इस दिन वृक्ष लगाएगा और उसकी पूजा करेगा, उसे उनका और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
वृक्ष पूजा का तरीका
हरियाली अमावस्या के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद किसी मंदिर में जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। इस दिन पीपल, बरगद, नीम, आंवला या तुलसी जैसे वृक्षों को लगाना और उनकी पूजा करना शुभ माना जाता है। वृक्ष लगाने के बाद उन्हें जल दें, रोली-चावल चढ़ाएं, धूप-दीप दिखाएं और उनकी परिक्रमा करें। कुछ लोग इस दिन खीर, पूड़ी और अन्य पकवान बनाकर वृक्षों को अर्पित करते हैं।
हरियाली अमावस्या का महत्व
हरियाली अमावस्या का पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह वर्षा ऋतु के आगमन का सूचक है और इस दौरान चारों ओर हरियाली छाई रहती है। इस दिन लोग नए पेड़-पौधे लगाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि वृक्षों में देवताओं का वास होता है। इसलिए, हरियाली अमावस्या पर वृक्षों की पूजा करके हम प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
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