सावन का महीना भारतीय सनातन संस्कृति में विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। यह वह समय होता है जब प्रकृति स्वयं साधना में लीन प्रतीत होती है—हरियाली से आच्छादित धरती, रिमझिम बारिश की मधुर तान, और वातावरण में व्याप्त विशेष ऊर्जात्मक कंपन। ऐसे माहौल में जब सोमवार आता है—जो स्वयं शिव का दिन माना गया है—तो उसका प्रभाव साधारण नहीं होता, बल्कि अत्यंत विशिष्ट और दिव्य हो जाता है।
सावन का महीना भारतीय सनातन संस्कृति में विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। यह वह समय होता है जब प्रकृति स्वयं साधना में लीन प्रतीत होती है—हरियाली से आच्छादित धरती, रिमझिम बारिश की मधुर तान, और वातावरण में व्याप्त विशेष ऊर्जात्मक कंपन। ऐसे माहौल में जब सोमवार आता है—जो स्वयं शिव का दिन माना गया है—तो उसका प्रभाव साधारण नहीं होता, बल्कि अत्यंत विशिष्ट और दिव्य हो जाता है।
सावन में सोमवार का महत्व केवल लोक परंपरा का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहन आध्यात्मिक और दार्शनिक मर्म छिपा है। शिव, जो स्वयं विरक्ति और समाधि के देवता हैं, वे वर्षा ऋतु के इसी कालखंड में अपने शीतल और करुणामयी रूप में भक्तों के अत्यंत समीप माने जाते हैं। वर्षा जहां एक ओर जीवनदायिनी होती है, वहीं दूसरी ओर वह भीतरी मलिनताओं को भी धोने का प्रतीक बनती है। यही कारण है कि इस मास में शिव को जल, बिल्वपत्र, और मन के समर्पण से प्रसन्न करना विशेष फलदायी होता है।
सोमवार, "सोम" अर्थात् चंद्रमा का दिन भी है। चंद्र मन का प्रतीक होता है, और शिव के मस्तक पर विराजमान है। सावन में शिव पूजा करते हुए मन को स्थिर करना, उसे निर्मल करना और उसे शिव में एकाग्र कर देना, आत्मोन्नति की प्रक्रिया को तीव्र करता है। यही कारण है कि इस मास में सोमवार को व्रत रखने, शिवलिंग पर जल अर्पित करने, रुद्राभिषेक करने और शिव मंत्रों का जाप करने की परंपरा अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो सावन के सोमवार आत्मसंयम और आंतरिक शुद्धिकरण का भी प्रतीक हैं। जब शरीर वर्षा के जल से स्पर्श पाता है, तो आत्मा शिव की कृपा से भीगती है। जब भक्त रुद्राभिषेक में लीन होता है, तो केवल भगवान को नहीं, स्वयं को भी पवित्र करता है। यह वह समय है जब प्रकृति बाहर से हमें शीतल करती है और शिव भीतर से हमें जाग्रत करते हैं।
सावन एक ऋतु नहीं, एक साधना है। यह वह महीना है जब स्वयं ब्रह्मांड की ऊर्जा पृथ्वी पर उतरती है और शिवभक्ति के माध्यम से उसे आत्मा में धारण किया जा सकता है। सावन के सोमवार केवल एक तिथि नहीं, बल्कि स्वयं को शिवस्वरूप बनाने का अवसर हैं। यह समय है जब श्रद्धा और साधना के बीच की दूरी मिट जाती है।
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