देश में आबादी बढ़ने की दर घटने का असर परिवारों के आकार पर भी पड़ रहा है। छोटे परिवारों की संख्या बढ़ रही है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 2019 और 2021 के बीच अधिकांश घरों में सदस्य संख्या तीन से पांच के बीच रही। जबकि 1970 और 1980 के दशक में परिवारों में 5 से 6 सदस्य होते थे।
वर्तमान में 23 प्रतिशत से अधिक परिवारों में सदस्य संख्या चार है। देश के सिर्फ 4 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं, जिनमें सदस्य संख्या नौ से ज्यादा है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में 5 या अधिक सदस्यों वाले परिवारों की हिस्सेदारी अधिक है। परिवारों का छोटा आकार भी जनसंख्या नियंत्रण का संकेत है।
भारत की प्रजनन दर अब आबादी के रिप्लेसमेंट के स्तर से नीचे गिर गई है। यानी वर्तमान आबादी बरकरार नहीं रह पाएगी। हालांकि प्रजनन दर भारत के हर राज्य में गिर रही है। लेकिन इसमें भी भारत के राज्यों के बीच बड़ा अंतर है।
दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में, टोटल फर्टिलिटी रेट पहले से ही अन्य राज्यों की तुलना में कम है। भारत में 1950 में फर्टिलिटी रेट 5.73 था। तब दुनिया में यह आंकड़ा 4.86 था। 2023 में भारत में फर्टिलिटी रेट 2 है। जबकि वैश्विक 2.31 है। 2050 तक यह गिरकर 1.29 हो जाएगा। जबकि 2100 तक भारत में फर्टलिटी रेट 1.04 के चिंताजनक स्तर को छू सकता है।
देश में आबादी बढ़ने की दर घटने का असर परिवारों के आकार पर भी पड़ रहा है। छोटे परिवारों की संख्या बढ़ रही है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 2019 और 2021 के बीच अधिकांश घरों में सदस्य संख्या तीन से पांच के बीच रही। जबकि 1970 और 1980 के दशक में परिवारों में 5 से 6 सदस्य होते थे। वर्तमान में 23 प्रतिशत से अधिक परिवारों में सदस्य संख्या चार है। देश के सिर्फ 4 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं, जिनमें सदस्य संख्या नौ से ज्यादा है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में 5 या अधिक सदस्यों वाले परिवारों की हिस्सेदारी अधिक है। परिवारों का छोटा आकार भी जनसंख्या नियंत्रण का संकेत है।
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