विवेक पाण्डेय
- 1857 की क्रांति के महानायक मंगल पाण्डेय
- 8 अप्रैल यानि मंगल पाण्डेय का बलिदान दिवस
- बागियों की धरती बलिया उप्र में हुआ था जन्म
- 19 जुलाई 1827 को बलिया के नगवा में हुआ था जन्म
- स्वतंत्रता क्रांति के पहले और सबसे सशक्त क्रांतिकारी
- साल 1857 में महान क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय को फांसी दी गई थी
- 18 की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की थी ज्वाइन
- कंपनी में सैनिक के तौर पर हुए थे चयनित
- इनफील्ड राइफल में गाय और सुअर की चर्बी का किया था विरोध
- 29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने किया था विद्रोह
- कर्नल हीलट ने मंगल पाण्डेय को पकड़ने का आदेश दिया
- 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का हुआ था कोर्ट मार्शल
- 8 अप्रैल को मंगल पाण्डेय को दी गई थी फांसी
मंगल पाण्डेय का जन्म :-
मंगल पाण्डेय का जन्म 19 जूलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था…ब्राह्मण कुल में जन्में मंगल के पिता का नाम दिवाकर पाण्डेय था…मंगल महज 18 साल की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक के तौर पर चयनित हुए थे…
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मंगल पाण्डेय बलिदान दिवस :-
मंगल पाण्डेय यानि स्वतंत्रता क्रांति के पहले और सबसे सशक्त क्रांतिकारी…8 अप्रैल 1857 को महान क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय को फांसी दी गई थी…मंगल पांडे, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे…जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया…मंगल को यूं तो फांसी देने की तारीख 18 अप्रैल 1857 तय हुई थी…लेकिन अंग्रेजी शासकों को विद्रोह और बगावत का डर कुछ यूं सताने लगा कि…8 अप्रैल को ही पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में उन्हें फांसी दे दी गई…

विद्रोही मंगल का विराट स्वरूप :-
बंगाल की बैरकपुर छावनी में तैनात मंगल पाण्डेय ने कारतूस का इस्तेमाल करने से साफ मना कर दिया…और अपने सभी साथी सिपाहियों को इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित भी किया…बता दें, मंगल पाण्डेय ने ऐतिहासिक 'फिरंगी मारो' का नारा भी दिया…इससे पहले 29 मार्च 1857 को मंगल ने दो ब्रिटिश अफसरों पर हमला भी किया था…इसके बाद उनपर मुकदमा भी चलाया…वहीं 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया…और आखिरकार 8 अप्रैल को उन्हें फांसी दी गई…हमारा देश भारत 1947 में जरूर स्वतन्त्र हुआ…पर उस प्रथम क्रान्तिकारी मंगल पांडे के बलिदान को आज भी देशवासी याद रखते हैं…

1857 की क्रांति :-
1857 की क्रांति को सैनिक विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है…जिसकी शुरूआत अंग्रेजों की एक बंदूक की वजह से हुई थी…दरअसल साल 1850 में नई इनफील्ड राइफल लाई गई थी…जिसमें गोली दागने के लिए प्रिकशन कैप का उपयोग किया गया था…राइफल में गोली भरने के लिए पुरानी प्रक्रिया का ही इस्तेमाल होता था…जिसमें बंदूक में बारूद भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था…नई राइफल आने के बाद सिपाहियों में ये खबर आग की तरह फैल गई कि…कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है…ऐसे में इन कारतूसों को मुंह से खोलकर राइफल में लोड करना…हिंदुओं और मुस्लिमों के बस की बात नहीं थी…दरअसल पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गाय हिंदुओं के लिए माता (भगवान) और सुअर मुसलमानों के लिए हराम…इसको लेकर समय-समय पर बगावतों की खबरें भी सामने आने लगी…
मंगल पाण्डेय का विद्रोह और संघर्ष :-
आखिरकार 29 मार्च साल 1857 को मंगल पाण्डेय ने इसको लेकर विद्रोह कर ही दिया…बता दें इस दौरान मंगल पाण्डेय चारों ओर से घिर गये थे…वे समझ गये थे कि…अब बचना मानो असम्भव ही है…इस दौरान उन्होंने अपनी बन्दूक से खुद को ही गोली मार ली…इससे वो घायल होकर गिर पड़े…मंगल पाण्डेय ने कहा था कि…मैं अंग्रेजों को अपने देश का भाग्य विधाता बिल्कुल ही नहीं मानता…

मंगल ने कहा था कि…यदि देश को आजाद कराना अपराध है…तो मैं हर सजा भुगतने को तैयार हूं…तब तक चारों ओर शोर भी मच गया था…वहीं 34वीं पल्टन के कर्नल हीलट ने भारतीय सैनिकों को मंगल पाण्डेय को पकड़ने का आदेश दिया…पर वे इसके लिए तैयार नहीं हुए…इस पर अंग्रेज सैनिकों को बुलाया गया था…और इस तरह से मंगल पाण्डेय को अंग्रेजों ने पकड़ा…उन पर मुकदमा चला और आखिरकार मां भारती के परम सपूत मंगल को फांसी दे दी गई…देश में आज़ादी के परवानों में मानो एक अलख सी जाग गई हो…ये मंगल का ही प्रताप था कि…आज़ादी की जो अलख वो जगा कर गए…वो फिर स्वतंत्रता बाद ही थमी…धन्य हैं मंगल जैसे सपूत…जिनपर मां भारती को भी अभिमान है….
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