ये जो रेले मेले में है, उन्हें भी शून्य से शिखर और अनंत की यात्रा अकेले ही करनी है। क्योंकि शिखर, सिंहासन और शमशान ये साझा नहीं होते।
ये जो रेले मेले में है, उन्हें भी शून्य से शिखर और अनंत की यात्रा अकेले ही करनी है। क्योंकि शिखर, सिंहासन और शमशान ये साझा नहीं होते। हां जो विपदा में निस्वार्थ साथ थे, और अकारण साथ हैं वही सहोदर है, स्वजन हैं। ऐसे स्वजनों की प्रियजनों की प्रार्थनाएं जरूर साथ जाएंगी सो जीवन रहते निश्चित ही ये धन संभाल कर रखिए।
बाबा ने मानस में कहा कि-
रूठे सुजन मनाइए जो रुठें सौ बार,
तुलसी फिर फिर पोइए टूटें मुक्ताहार।
ऐसे हीरे एक दो भी मिल जाएं पूरे जीवन में तो तुम अपने आप को कुबेर से कम मत आंकना! हां नजर पारखी जरूर रखना क्योंकि लाखों लोग हीरों के भ्रम में कांच की पोटलियां लादे हुए, और ज्यादा, और ज्यादा हीरों के संग्रह की लिप्सा में यंत्रवत दौड़ रहे हैं! कांच जोड़ जोड़ कर अपने सर का बोझ चौगुना कर रहे हैं।
ऐसे अवतारी आपको बिना ईश्वर कृपा के नहीं मिलेंगे बाबा ने मानस में कहा भी हैं कि
"बिनु हरि कृपा मिलहिं नहीं संता"
स्मरण रहे संत भगवा चोला पहने, माथे पर तिलक चंदन लगाए कोई व्यक्ति नहीं है बल्कि संत एक प्रवृत्ति है। राजा जनक भी संत थे, महाराज दशरथ भी संत थे, हमारे आसपास भी ऐसे संत प्रवृति बाले लोग होंगे लेकिन हम तो खर्चे करके पर्चे निकलबाकर संत और ईश्वर ढूंढ रहे हैं! नहीं मिलेंगे।
संत स्वरूप में रावण भी था और कालनेमी भी
संत स्वरूप में रावण भी था और कालनेमी भी। इसलिए किसी को स्वरूप से संत न मानिए वृति से मानिए। ये जो वास्तविक संत वृति के प्राणी है, ये न गुरु दीक्षा दिलाएंगे, न दक्षिणा लेंगे, न गुरुमंत्र देंगे, ये जीवन मंत्र देते हैं। ये तुम्हें सहायता के प्रतिफल में बांधेंगे नहीं बल्कि साधेंगे, स्थापित करेंगे और सहज भाव से आगे बढ़ जाएंगे जैसे उन्होंने कुछ किया ही न हो।
कदाचित ही कोई इन्हें जान पाये और जो जान ले और मान ले वह कृष्णत्व को प्राप्त हो जाता है। स्मरण कीजिए कौरवों के साथ एक तरफ चतुरंगिणी सेना थी, तमाम अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित योद्धगण और दूसरी तरफ अर्जुन के साथ अकेले निशस्त्र कृष्ण!!! महाभारत का परिणाम सभी को ज्ञात है। बाकी अंत और अनंत की यात्रा में कृष्ण और अर्जुन भी अकेले थे।
अकेलेपन को ईश्वर कृपा मानो
यदि अकेले हो तो अपने अकेलेपन को ईश्वर कृपा मानो और इसे एकांत के दृष्टिकोण से देखो और चिंतन मनन करो। पाओगे किसी न किसी रूप में ईश्वर आया था जीवन में, परंतु पहचान नहीं पाए, लेकिन अब तंद्रा टूट ही गई है तो जाग्रत ही रहना! पद, प्रतिष्ठा, लाखों अनुयायी, करोड़ों समर्थक और प्रसंशक, इनकी चकाचौंध में उसको खो मत देना। मिल जाए तो संभाल कर रखना उसको हीरे की तरह।
सबकी जय हो, मंगल हो।
#नवीन_विचार
Written By- Navin Purohit
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