शादी का वादा कर शारीरिक संबंध बनाने को रेप के दायरे से बाहर कर दिया गया, लेकिन इसे अलग से अपराध की श्रेणी में अभी भी रखा गया है। यानी महिला के साथ शादी का वादा कर कोई संबंध बनाता है और वादा पूरा करने की उसकी मंशा नहीं है, तो वह रेप नहीं होगा लेकिन अपराध होगा और उसमें 10 साल तक कैद की सजा हो सकती है
ब्रेकअप पर मुकदमा
इसका मतलब यह हुआ कि कपल के बीच संबंध बने और ब्रेकअप हुआ तो आपराधिक मुकदमा कायम होगा अगर संबंध की बुनियाद शादी का वादा है। भारतीय न्याय संहिता की धारा-69 के तहत ऐसे मुकदमे दर्ज होंगे। लेकिन उसे रेप की धारा-63 से अलग कर दिया गया है। बदलती सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए इसे रेप से बाहर करना सराहनीय माना जा रहा है, लेकिन अभी भी इसे अपराध की श्रेणी में रखे जाने पर बहस चल रही है।
रेप की परिभाषा
IPC की धारा-375 में रेप को परिभाषित किया गया है। अगर किसी महिला के साथ कोई पुरुष जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो वह रेप होगा। महिला की उम्र अगर 18 साल से कम है तो उसकी सहमति से बना संबंध भी रेप होगा। शादी का वादा कर बनाया गया संबंध भी रेप के दायरे में होगा। IPC की धारा-90 में बताया गया है कि वैसी सहमति का कोई मतलब नहीं है जो झूठे वादे के जरिये ली गई हो।
न्याय संहिता के प्रावधान
भारतीय न्याय संहिता में रेप की परिभाषा मौटे तौर पर वही है जो IPC में है, सिर्फ शादी का वादा कर संबंध बनाना इसमें रेप की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। नए कानून के मुताबिक अगर कोई शादी, नौकरी या प्रोमोशन का वादा कर संबंध बनाता है तो ऐसे मामलों को रेप नहीं माना जाएगा। इनमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 10 साल कैद की सजा हो सकती है।
ब्रेकअप अपराध नहीं
सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि ब्रेकअप कोई अपराध नहीं है। यह भी कि शादी का झूठा वादा करना और नेक नीयत से किए गए वादे का पूरा न होना- दोनों में फर्क है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोपी ने शादी का वादा किया हो, उसे निभाने का इरादा भी रखता हो लेकिन बाद में कुछ ऐसी परिस्थितियां बन जाएं जो आरोपी के कंट्रोल के बाहर हों। अदालत ने कहा था कि महिला अगर पुरुष के साथ लगातार संबंध में हो तो संबंध टूटना रेप का आधार नहीं हो सकता।
शारीरिक संबंध को शादी से जोड़ा
सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट रेखा अग्रवाल कहती हैं कि शादी का वादा कर संबंध बनाने के मामले को रेप के दायरे से बेशक बाहर किया गया है लेकिन इसे अभी भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है जो विवाद का विषय है। समाज तेजी से बदल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एडल्टरी को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। यानी शादी से बाहर के संबंध भी अब अपराध नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट लिव इन रिलेशनशिप को भी मान्यता दे चुका है। ऐसे में शारीरिक संबंध को शादी से जोड़ना क्या समाज को पीछे ले जाने की कोशिश है?
लड़की का बचाव
बहरहाल इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कपल इस आधार पर संबंध बनाते हैं कि उन्हें शादी करनी है या फिर लड़के ने शादी का वादा किया है। लेकिन बाद में अगर लड़का शादी से इनकार कर देता है तो लड़की विचित्र स्थिति में पड़ जाती है। इस लिहाज से, नए कानून के जरिये ऐसी महिलाओं को प्रोटेक्ट करने की कोशिश की गई है। लेकिन इस कानून के दुरुपयोग की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। सहमति और फिर ब्रेकअप के बीच एक पतली सी लकीर है। इसे समाज के बदलते नजरिये से देखना जरूरी है क्योंकि देश में कई इलाके ऐसे हैं जहां शादी और शारीरिक संबंध को आपस में जोड़कर नहीं देखा जाता है।
रेप से बाहर करने का असर
इसे समझने के लिए एक केस का उदाहरण देखना होगा। मसला अगस्त 2017 का है। दिल्ली हाईकोर्ट के सामने एक केस आया। लड़का और लड़की में प्यार हुआ और दोनों में संबंध बने। शादी का वादा कर संबंध बनाने का लड़की ने आरोप लगाया और रेप का केस दर्ज करा दिया। लेकिन इसके बाद लड़के ने उस लड़की से शादी कर ली। फिर दोनों ने दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा कि वे अब शादीशुदा हैं और केस रद्द किया जाए। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला देकर कहा कि हत्या, डकैती और रेप जैसे मामले में दोनों पक्षों में समझौते के आधार पर केस खारिज नहीं हो सकता क्योंकि ये किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि समाज के खिलाफ किए गए अपराध होते हैं।
हो सकेगा फैसला
अब भारतीय न्याय संहिता के तहत चूंकि ऐसे मामले रेप के दायरे से बाहर कर दिए गए हैं, इसलिए अगर ब्रेकअप के बाद केस दर्ज होता है और बात शादी तक पहुंचती है तो केस खारिज करने की अर्जी पर हाईकोर्ट परिस्थितियों को देखकर फैसला ले सकता है।
शादी का वादा कर संबंध बनाने को रेप के दायरे से बाहर करना एक अहम कदम है। इससे ब्रेकअप जैसे मामलों को रेप जैसे धब्बे से बचाने में मदद मिलेगी। लेकिन इसे अभी भी अपराध की श्रेणी में रखना बहस का विषय जरूर है। बदलते सामाजिक परिवेश में शारीरिक संबंध और शादी को एक साथ जोड़कर देखने के बजाय इसे अलग रखने की बात भी कही जा रही है जिस पर सोचने की जरूरत है।
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