दिवाली का त्योहार रोशनी, उत्साह और भव्यता के सबसे जीवंत त्योहारों में से एक है। इस पर्व की चमक किसी न किसी रूप में हमेशा झलकती है। लेकिन, रोशनी के बिना दिवाली का कोई महत्व नहीं होता। यही वजह है कि दिवाली के बहाने फिल्मकार अपनी ‘लाइट्स, कैमरा, एक्शन’ के साथ इसे अच्छी तरह से समझाते हैं।
दिवाली का त्योहार रोशनी, उत्साह और भव्यता के सबसे जीवंत त्योहारों में से एक है। इस पर्व की चमक किसी न किसी रूप में हमेशा झलकती है। लेकिन, रोशनी के बिना दिवाली का कोई महत्व नहीं होता। यही वजह है कि दिवाली के बहाने फिल्मकार अपनी ‘लाइट्स, कैमरा, एक्शन’ के साथ इसे अच्छी तरह से समझाते हैं। तभी तो फिल्मों में भव्य दीयों, पीतल के लैंप, एलईडी लाइट्स और मोमबत्तियों के साथ ऐसे दृश्य रोशन होते हैं। ऐसे ही ‘कभी ख़ुशी-कभी गम’ में जया बच्चन का दिवाली गीत प्रस्तुत करने का ये सबसे बेहतर यादगार प्रसंग बना। लेकिन, यह खुशी वाला दिन भी सभी को आनंदित नहीं करता, जैसा कि ‘तारे ज़मीन पर’ दर्शील सफारी को दर्शाया गया। स्कूल की छुट्टियां खत्म होते ही उसे बोर्डिंग स्कूल भेज दिया जाता है, जहां उसकी उदासी दर्शकों को सालती है। वहीं ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ में दिवाली के दिन पूरी बस्ती एक साथ सद्भाव का महत्व दिखाती है, जिसमें नायक शाहरुख़ और नायिका जूही चावला बस्ती वालों के साथ फुलझड़ी जलाते हुए अपने बंधन का अहसास कराते हैं। ऐसे ही याद कीजिए तुषार कपूर की फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ जिसमें वे करीना कपूर को सड़क पर बच्चों के साथ मस्ती करते हुए अनार जलाते देखते हैं। तब उन्हें पहली नजर के प्यार का अनुभव होता है। इसके अलावा फिल्मों का दायित्व जागरूकता पैदा करना भी होता है। आशा पारेख को फिल्म ‘चिराग’ में यह समझाने के लिए अपनी आंखों की रोशनी खोनी पड़ती है कि कैसे पटाखे से भयानक दुर्घटना हो सकती है। बात यहीं ख़त्म नहीं होती दिवाली के दिन अपराधी हो या पुलिसवाला- सभी अपनी खुशियां बांटने का मौका नहीं छोड़ते। फिल्मों की किताब में यह सब अपने परिवार से प्यार करने के बारे में है और इसलिए ‘वास्तव’ में संजय दत्त दिवाली उपहार और मिठाई बांटने अपनी पुरानी चॉल में जाते हैं।
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