‘भाषा’ मानव सभ्यता के विकास का इतिहास जानने का इकलौता जरिया है.. और भाषा ने ही सहेजकर रखा है प्राचीन से लेकर आधुनिक इतिहास को... किस्से, कहानियों और कथाओं की शक्ल में... इन्हीं किस्से, कहानियों के क्रम में जीवित संस्कृति और सांस्कृतिक उत्सवधर्मिता को... हम तीज-त्योहारों के रूप में मनाते हैं...
होली की हिस्ट्री
रंगों का त्योहार ‘होली’ सिर्फ एक त्योहार ही नहीं बल्कि... भारतवर्ष का प्रतीक भी है जो सभी वर्गों और... संस्कृतियों को एक रंग में रंगकर देश का चरित्र प्रस्तुत करता है... होलिका दहन हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है और... साथ ही होली किसी धर्म विशेष में ही नहीं बल्कि... सभी धर्म संप्रदायों में मनाई जाती रही है... इतिहास की किताबों में जोधाबाई के साथ अकबर और... नूरजहाँ के साथ जहाँगीर की होली खेलने की कहानियां इसकी पुष्टि करती हैं... वहीं देश के इस सांस्कृतिक त्योहार को लेकर... कई सारे किस्से, कहानियां और कथाएं सुनाईं जाती हैं... और उनमें से जो कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है... वो दानवराज हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र भक्त प्रहलाद की है...कहानी नंबर 1
कहानी भगवान विष्णु के द्वारपालों जय और विजय से शुरू होती है... जो सनद कुमारों के श्राप के कारण राक्षस कुल में पैदा हुए... एक तरफ जहां जय हिरण्याक्ष नामक दैत्य बना... जिसे भगवान नारायण ने वराह रूप धारण करके मारा और धरती को बचाया... वहीं विजय नामक द्वारपाल हिरण्यकश्यप के रूप में पैदा हुआ... हिरण्यकश्यप का शाब्दिक अर्थ हिरण्य माने सोना और... काशीपु माने नरम कुशन से मिलकर बनता है... मतलब कि सोने के कपड़े पहने हुए... साथ ही ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय हिरण्यकश्यप का नाम हिरण्यकिशुप रखा गया... संस्कृत में कषि का अर्थ होता है हानिकारक, अनिष्टकर और पीड़ादायक... इसलिए सबको प्रताड़ित करने के कारण उसे बाद में हिरण्यकश्यप से जाना गया... हिरण्यकश्यप दैत्यों का राजा और एक भयंकर राक्षस था... जो बल और बुद्धि दोनो में ही अथाह था... और दैत्यराज का भय देवताओं की चिंता का कारण बना... पुराणों के अनुसार हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मदेव की कठोर तपस्या से एक वरदान प्राप्त किया... जिसमें उसे ना ही नर ना ही देव... ना ही सुबह ना ही रात के समय... ना ही घर के अंदर ना ही घर के बाहर... ना ही धरती पर ना ही आकाश में... ना अस्त्र से ना ही शस्त्र से कोई मार सकता था... लेकिन इस वरदान के बाद भी वह संतुष्ट नहीं था... इसलिए उसने अमर होने के लिए भोलेनाथ महादेव की तपस्या करने का सोचा... और वह महादेव को प्रसन्न करके अमर होने का वरदान लेने चला गया...हिरण्यकश्यप की मंशा देखकर देवलोक में डर का माहौल बन गया... हिरण्यकश्यप को महादेव की तपस्या से मिलने वाले वरदान से भयभीत होकर... देवताओं ने उसकी तपस्या में विघ्न ड़ालने का जिम्मा देवगुरु बृहस्पति को दिया... और स्वयं इंद्रदेव दैत्यरानी कयाधु के हरण के लिए निकल पड़े... देवगुरु बृहस्पति हिम शिखर पर बैठे हिरण्यकश्यप के पास... एक तोते का रूप बनाकर बैठ गए और हरिनाम का जप करने लगे... हरि के नाम से दैत्यराज का ध्यान टूट गया और साथ ही उसकी तपस्या भी भंग हो गई... उधर देवराज इंद्र हिरण्यकश्यप का रूप बनाकर उसके महल पहुंचे... और उसकी पत्नी कयाधु का हरण करने लगे... देवराज को ऐसे दैत्यरानी का हरण करते देखकर... देवर्षि नारद ने उन्हें रोका और कयाधु को अपने आश्रम ले आए... आश्रम में हरिनाम का गुणगान आठों याम होता था... जिससे कुछ समय बीतने के बाद दैत्यरानी को हरिनाम भाने लगा... दैत्यरानी कयाधु उस समय गर्भवती भी थी... और उसके पेट में पल रहा दैत्य पुत्र भी दिन भर हरि कीर्तन सुनता रहता था... और गर्भ में ही हरिनाम की महिमा सुनकर यह बालक भक्तराज प्रहलाद के नाम से जाना गया...
प्रहलाद जन्म से ही धार्मिक प्रवृत्ति का था और भगवान विष्णु का परम भक्त भी था... दैत्यराज हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को भाई हिरण्याक्ष का वध करने के कारण अपना शत्रु मानता था... और जब उसे पता चला कि उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त है... तो उसने प्रह्लाद को ऐसा करने से रोकने के लिए हर संभव कोशिश की... लेकिन फिर भी प्रह्लाद के ना मानने पर हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा... और इसी बीच हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया... हाथी के पैरों तले कुचलने की कोशिश की... लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर बार बच गया... आखिर में पुत्र की विष्णु भक्ति से तंग आकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया... होलिका जिसे वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी... इसलिए हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका प्रह्लाद को मारने के लिए... उसे अपनी गोद में बैठाकर आग में बैठ गई... लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई... और तभी से समाज में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में... होलिका दहन किया जाने लगा और इसे त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा... वहीं होलिका की घटना के बाद भी हिरण्यकश्यप का अंहकार और अत्याचार कम नहीं हुआ... जिसके बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का अंत किया... ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार हिरण्यकश्यप ने 107,280,000 वर्षों तक शासन किया...
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार होली मनाने के पीछे कुछ और कहानियां भी सुनाई जाती हैं... जिनमें होली का संबंध शिवजी-कामदेव, शिव बारात, राजा रघु, श्रीकृष्ण-पूतना और... वैदिक काल से बताया जाता है...
कहानी नंबर 2
जब इंद्रदेव ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का आदेश दिया... तो कामदेव ने वसंत को याद करके अपनी माया से वसंत का प्रभाव फैलाया... जिससे संसार के सभी प्राणी काममोहित हो गए... वहीं कामदेव ने शिवजी को मोहित करने के लिए होली तक प्रयास किया... और होली के दिन ही भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई... जिसके बाद भोलेनाथ ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया... इस घटना के बाद शिवजी ने माता पार्वती से विवाह करने की सम्मति दी... जिससे सभी देवी-देवताओं, शिवगणों और मनुष्यों में हर्षोल्लास फैल गया... और एक-दूसरे पर रंग-गुलाल उड़ाकर जोरदार उत्सव मनाया... वहीं कालान्तर में रंगों में डूबी शिव बारात को ही होली के रूप में मनाया जाने लगा...कहानी नंबर 3
कहानी नंबर तीन जिसमें बताया जाता है कि... इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना नाम की राक्षसी का वध किया था... और इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला के साथ-साथ एक-दूसरे पर रंग-गुलाल भी उड़ाया था... जो आज होली के रूप में मनाया जाता है...कहानी नंबर 4
कहानी नंबर चार जिसमें बताया जाता है कि... राजा रघु के राज्य में ढुण्डा नाम की एक राक्षसी ने... शिवजी से अमरत्व प्राप्त करके लोगों को... खासकर बच्चों को सताना शुरु कर दिया... वहीं भयभीत प्रजा ने अपनी पीड़ा राजा रघु को बताई... तब राजा रघु के पूछने पर महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि... शिवजी के वरदान के प्रभाव से राक्षसी की देवता, मनुष्य... अस्त्र-शस्त्र, ठंड-गर्मी या बारिश से मृत्यु संभव नहीं है... लेकिन साथ ही शिवजी ने यह भी कहा है कि... खेलते हुए बच्चों का शोर-गुल और हुडदंग उसकी मौत का कारण बन सकता है... ऋषि ने उपाय बताया कि फाल्गुन पूर्णिमा का दिन... शीत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का होता है... उस दिन सभी लोग एकत्र होकर आनंद और... खुशी के साथ हंसे, नाचे, गाएं और तालियां बजाएं... वहीं छोटे बच्चे शोर मचाकर... लकडिय़ा, घास और उपलें इकट्ठा कर मंत्र बोलकर... उनमें आग लगाकर अग्नि की परिक्रमा करें और उसमें होम करें... राजा रघु ने प्रजा के साथ इन सब क्रियाओं को करके ढुण्डा राक्षसी का अंत किया... इस प्रकार बच्चों पर से राक्षसी बाधा और प्रजा के भय का निवारण हुआ... वहीं इस दिन को होलिका और होली के नाम से मनाया जाने लगा...कहानी नंबर 5
कहानी नंबर पांच जिसके अनुसार... वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था... और उस समय खेत के अधपके अन्न को... यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था... जहां अन्न को होला कहा जाता था इसलिए कालान्तर में इस उत्सव का नाम होलिकोत्सव पड़ गया...होली कब है, कब है होली...? शोले फिल्म का ये मशहूर डायलॉग लगभग हम सबने सुना होगा... लेकिन इसका जवाब आज तक किसी ने नहीं दिया... पर आज हम आपको इस पुराने सवाल का सही और नया जवाब दिए देते हैं...
साल 2024 में होली के त्योहार की धूम... 24 मार्च से शुरू होकर रंग पंचमी के दिन 30 मार्च तक रहेगी... जिसमें होलिका दहन के लिए 24 मार्च की रात 11.12 से लेकर 12.07 तक का शुभ मुहुर्त है... वहीं अगले दिन 25 मार्च से लेकर 30 मार्च, रंग पंचमी तक... पूरे देश में होली के रंग उड़ते दिखाई देंगे...कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी... कहा जाता है कि भारत में हर कोस पर पानी और... हर चार कोस पर वाणी यानी कि भाषा बदल जाती है... और इसीलिए देश में कई जगह की होली... वहां की संस्कृति और रंग में रंगी हुई है...
1. पुष्कर-
राजस्थान में बसा एक शहर जो धार्मिक मान्यताओं को लेकर प्रसिद्ध है... और इसी के साथ पुष्कर अपनी होली के लिए भी पूरे देश में जाना जाता है... राजस्थान का पर्यटन विभाग पुष्कर शहर के... वराह घाट चौक पर होली के मेले का आयोजन करता है... वहीं इस मेले में तरह-तरह के कार्यक्रम जैसे... नृत्य और संगीत कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं... साथ ही पुष्कर की कपड़ा फाड़ होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है...2. वृंदावन -
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की होली भी काफी चर्चित है... जैसी होली यहां खेली जाती है वो अपने आप में अद्भुत है... साथ ही कथाओें में ऐसा वर्णन है कि स्वयं भगवान कृष्ण... इस मंदिर में सफेद पोशाक पहनकर आए थे और... उन्होंने अपने सभी भक्तों के ऊपर गुलाल-फूलों की वर्षा की थी... वहीं इसी प्रथा को आगे बढ़ाते हुए बांके बिहारी के पुजारी मंदिर में आए... सभी श्रद्धालुओं पर पुष्प और गुलाल फेंकते हैं... होली के समय मंदिर का माहौल ऐसा हो जाता है कि वहां आए श्रद्धालु भी... किसी दूसरे लोक में पहुंच जाते हैं और बस कृष्ण के भजन गुनगुनाते रहते हैं... सिर्फ यहीं नहीं मंदिर में जब हजारों की तादाद में पहुंचे भक्त... संगीत की धुन पर थिरकते हैं तो वहां का माहौल अविस्मरणीय हो जाता है...3. मथुरा-
मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के साथ-साथ बरसाने की लट्ठमार होली के लिए भी प्रसिद्ध है... होली को लेकर कई सारी फिल्मों में दिखाया गया माहौल जितना उत्साह से भरा दिखाई देता है... उससे ज्यादा आनंद बरसाने की होली में शामिल होकर मिलता है... लट्ठमार होली बरसाना और नंदगांव में खेली जाती है... जिसके पीछे मान्यता है कि भगवान कृष्ण, राधा के साथ होली खेलने के लिए बरसाना आए थे... भगवान कृष्ण के साथ उनकी पूरी पलटन भी आई थी... तभी से ये प्रचलन बन गया कि नंदगांव के पुरुष, कृष्ण बनकर बरसाना आते हैं और... वहां की महिलाएं राधा के रूप में उनका इंतजार करती हैं... फिर प्रथा के अनुसार महिलाएं, पुरुषों पर लट्ठ बरसाती हैं... इसलिए इसे लट्ठमार होली कहा जाता है...4. होली देश के अलग-अलग राज्यों में अलग ढंग से मनाई जाती है... जिसमें पंजाब में इसे होला मोहल्ला के रूप में मनाया जाता है... जोकि 6 दिनों तक चलता है... वहीं दक्षिण के हंपी शहर में भी होली धूमधाम से मनाई जाती है... साथ ही उदयपुर में होली को शाही अंदाज में मनाया जाता है... जिसमें मेवाड़ के राजा सभी अतिथियों का आतिशबाजी से स्वागत करते हैं... वहीं शिगमो-उत्सव गोवा के पंजिम, वास्को और मडगांव में आयोजित किया जाता है...
5. मणिपुर में होली मनाने का तरीका बिल्कुल अलग है... जहां पांच दिन चलने वाले याओसांग फेस्टिवल में कई सांस्कृति कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं... पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में होली एक दिन पहले मनाई जाती है... जिसमें बंगाल की सभ्यता की झलक के साथ पारंपरिक नृत्य और गायन देखने को मिलता है... वहीं महाराष्ट्र में होली बड़े ही अलग अंदाज में मनाई जाती है... यहां ज्यादातर सूखे रंगो का प्रयोग किया जाता है और... व्यंजन-पकवानों में पूरन पोली परोसी जाती है... यहां धुलेंडी के बाद रंगों से खेलने की परंपरा है...
देश में इन अलग-अलग नामों से मनाया जाता है होली का त्यौहार
होली को देश के अलग-अलग राज्यों में... अलग-अलग नामों से भी बुलाया जाता है... जहां बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश में होली को फगुआ और फाग कहा जाता है तो वहीं... महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा में इसे फाल्गुन पूर्णिमा, रंग पंचमी और गोविंदा होली कहते हैं... हरियाणा में होली को दुलंडी और धुलैंडी तो... पंजाब में होली को होला मोहल्ला कहा जाता है... वहीं पश्चिम बंगाल और ओडिशा में होली को ‘बसंत उत्सव’ और ’डोल पूर्णिमा’ के रूप में मनाया जाता है... दक्षिण के राज्यों में होली को लोग कामदेव के बलिदान के रूप में याद करते हैं... इसलिए इसे कमान पंडिगई, कामाविलास, कामा-दाहानाम और कामना हब्बा कहते हैं... पहाड़ी राज्य हिमाचल और उत्तराखंड में बैठकी होली, खड़ी होली, महिला होली शामिल है... साथ ही पहाड़ों की कुमाउनी होली सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है...भारत के अलावा दुनिया के तमाम देशों में भी होली की तर्ज पर ही कुछ फेस्टिवल मनाए जाते हैं
भारत के अलावा दुनिया के तमाम देशों में भी होली की तरह ही कुछ फेस्टिवल मनाए जाते हैं... जिनमें रंग, गुलाल और कीचड़ जैसी चीजें इस्तेमाल की जाती हैं... दक्षिण अफ्रीका उन देशों में शामिल है जहां होली को धूम-धाम से मनाया जाता है... यहां होलिका दहन के साथ-साथ होली के गीत भी गाए जाते हैं... ऑस्ट्रेलिया में भी हर 2 साल में वाटरमेलन फेस्टिवल मनाया जाता है... जिसमें लोग एक-दूसरे पर तरबूज फेंकते हैं... वहीं अमेरिका में रंगों और कीचड़ की होली खेली जाती है... वहीं थाईलैंड में लोग बौद्ध न्यू ईयर के दिन एक-दूसरे पर ठंडा पानी और रंग फेंकते हैं... बता दें कि जर्मनी, इंग्लैंड, इटली, स्पेन, न्यूजीलैंड, जापान, मॉरिशस, फिजी, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया के साथ-साथ रोम में भी होली की तर्ज पर फेस्टिवल्स मनाए जाते हैं...कौन हैं 'जोगी' जिन्हें किसी गाने में कुछ ढूंढने के लिए कहा जाता है तो कोई होली के गीतों में इन्हें सर्रर्र से बुलाता है, जानिए जोगी जी की जीवनी...
होली भारतीय परंपरा और सांस्कृतिक उत्सवधर्मिता को जीवित रखने वाला त्योहार है... जब भी होली और होली के गीतों की बात आती है तो... एक शब्द बार-बार सुनाई देता है ‘जोगी’... फिर चाहे वो किसी गाने में कुछ ढूंढ रहा हो या फिर... कहीं कोई जोगी जी को सर्रर्र से बुला रहा हो... तो इस बहुचर्चित शब्द ‘जोगी जी’ के बारे में जान लेते हैं... ‘जोगी’ माने होता है जिसे संसार से कोई लेना-देना ना हो... ऐसे में जोगी को होली के अवसर पर छेड़ा जाता है कि... संसार छोड़ने से पहले यहां के रंग में खुद को रंग लो... वहीं जोगीरा को बनारस में कबीरा भी कहते हैं... जोगीरा अवधी, भोजपुरी, बनारसी काव्य नाटक की एक मिश्रित विधा भी होती है... जिसमें हास्य-व्यंग्य का ज़बरदस्त छौंक दिया जाता है... होली के दिन लोग जोगीरा को आमंत्रित करते हैं... क्योंकि जोगीरा खुलकर कहने और खिलकर होली खेलने की परंपरा है...
भारतीय संस्कृति का कोई भी त्योहार या उत्सव संगीत के बिना अधूरा है... सोचो संगीत अगर हमारे शब्दों को ध्वनि ना दे तो... कोई भी भाव और विचार व्यक्त कर पाना असंभव होगा... अब इतने जरूरी संगीत का रंगों के त्योहार होली में कोई योगदान ना हो... ऐसा हो नहीं सकता... इसलिए होली में पारंपरिक संगीत का कितना योगदान है... जान लीजिए...
दरअसल भारतीय शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक और फ़िल्मी संगीत की परम्पराओं में होली का विशेष महत्व है... शास्त्रीय संगीत में धमार, ध्रुपद, धमार, छोटे-बड़े ख्याल और ठुमरी का होली से गहरा संबंध है... बसंत, बहार, हिंडोल ऐसे राग हैं जो होली में खूब गाए जाते हैं... उपशास्त्रीय संगीत में चैती, दादरा और ठुमरी के साथ होली गाई जाती है... राजस्थान के अजमेर शहर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर भी गाई जाने वाली होली का भी विशेष रंग है...
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