मैरिटल रेप अपराध की कैटेगरी में रखा जाए या नहीं, इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
मैरिटल रेप के मामले में अलग-अलग हाई कोर्ट का अलग-अलग फैसला आया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है और सुनवाई होने वाली है। ऐसे में पिक्चर सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई के बाद ही साफ हो जाएगी। गुजरात हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते कहा कि बलात्कार तो बलात्कार है और भले ही किसी महिला के पति ने उसके साथ किया हो। भारत में महिलाओं के खिलाफ जो सेक्सुअल अपराध होता है, उस पर मौन तोड़ने की जरूरत है। वहीं इस महीने की शुरुआत में ही एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप में बड़ा फैसला देते हुए कहा कि पत्नी की उम्र अगर 18 साल से ज्यादा हो तो IPC के तहत वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जा सकता है। मैरिटल रेप मामले में अलग-अलग हाई कोर्ट का फैसला भी अलग-अलग है। वैसे मैरिटल रेप का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है और इस पर सुनवाई होनी है
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट
एक मामले में फैसला दिया था कि पति के खिलाफ जबरन अप्राकृतिक संबंध बनाने का केस नहीं चल सकता है, क्योंकि रेप के मामले में पति को अपवाद में रखा गया है और रेप कानून की नई परिभाषा ज्यादा व्यापक है और अप्राकृतिक संबंध भी रेप के दायरे में है। ऐसे में पति के खिलाफ जबरन अप्राकृतिक संबंध का केस नहीं चलेगा क्योंकि मैरिटल रेप अपराध नहीं है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट
पत्नी की उम्र अगर 18 साल से ज्यादा हो तो IPC तहत पति के खिलाफ मैरिटल रेप का केस नहीं बनेगा। आरोपी को अप्राकृतिक अपराध के मामले में बरी करते हुए यह टिप्पणी की गई। कोर्ट ने कहा कि धारा-377 के तहत जो अपराध है वह रेप की परिभाषा में शामिल है और मैरिटल रेप के मामले में पति को अपवाद में रखा गया है।
गुजरात हाई कोर्ट
रेप तो रेप होता है, भले ही रेप करने वाला पति ही क्यों न हो। अदालत ने कहा कि भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की वास्तविक घटनाएं संभवतया आंकड़ों से कहीं ज्यादा है। महिलाओं को ऐसे वातावरण में रहना पड़ता है जहां वह हिंसा को झेलती हैं।
केरल हाई कोर्ट
पत्नी की मर्जी के खिलाफ जाकर अगर पति संबंध बनाता है यानी मैरिटल रेप करता है तो यह तलाक का मजबूत आधार होगा। कोर्ट ने कहा कि यह मानसिक और शारीरिक क्रूरता के दायरे में है और यह तलाक का आधार है।
दिल्ली हाईकोर्ट के खंडित फैसले के बाद अब सुनबाई सुप्रीम कोर्ट में
दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने के लिए अर्जी दाखिल की गई थी। वहीं, केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट को बताया था चूंकि इस मामले का सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए केंद्र परामर्श प्रक्रिया के बाद ही अपना पक्ष रखेगा। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में जो फैसला दिया वह बंटा हुआ था। दो जजों की बेंच में एक जज ने इसे अपराध की श्रेणी में लाने की बात कही तो दूसरे ने इसके विपरीत आशय जाहिर किया। जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया है।
← Back to IND Editorial News
Comments (0)