परम-आत्मा का ही नाम है शिव, जिसका संस्कृत अर्थ है 'सदा कल्याणकारी', अर्थात वो जो सभी का कल्याण करता है। शिवरात्रि व शिवजयन्ती भारत में द्वापर युग से मनाई जाती है।
महा अर्थार्थ 'महान', रात्रि अर्थार्थ 'अज्ञान की रात' और जयन्ती अर्थार्थ 'जन्म दिवस'। परमपिता परमात्मा शिव तब आते हैं जब अज्ञान अंधकार की रात्रि प्रबल हो जाती है। परम-आत्मा का ही नाम है शिव, जिसका संस्कृत अर्थ है 'सदा कल्याणकारी', अर्थात वो जो सभी का कल्याण करता है। शिवरात्रि व शिवजयन्ती भारत में द्वापर युग से मनाई जाती है। यह दिन हम ईश्वर के इस धरा पर अवतरण के समय की याद में मनाते हैं। शिव के अलावा ओर किसी को भी हम 'परम-आत्मा' नहीं कहते। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहते है। बाकि सभी है मनुष्य। तो हम उसी निराकार परमपिता के अवतरण का यादगार दिवस मनाते है।
शिव की रात्रि क्यों?
शिव के साथ रात शब्द इसलिए जुड़ा है क्योकि वो अज्ञान की अँधेरी रत में इस सृष्टि पर आते हैं। जब सारा संसार, मनुष्य मात्र अज्ञान रात्रि में, अर्थात माया के वश हो जाता है, जब सभी आत्माएं 5 विकारो के प्रभाव से पतित हो जाती हैं, जब पवित्रता और शान्ति का सत्य धर्म व स्वम् की आत्मिक सत्य पहचान हम भूल जाते है। सिर्फ ऐसे समय पर, हमे जगाने, समस्त मानवता के उत्थान व सम्पूर्ण विश्व में फिर से शान्ति, पवित्रता और प्रेम का सत-धर्म स्थापित करने परमात्मा एक साधारण शरीर में प्रवेश करते हैं।
शिव अवतरण
परमात्मा पिता का हम बच्चों से यह वायदा है कि जब-जब धर्म की अति ग्लानि होंगी, सृष्टि पर पाप व अन्याय बढ़ जायेगा है, तब वे इस धरा पर अवतरित होंगे. अब हमने जाना है की वो एक साधारण मनुष्य तन का आधार लें, हमें सत्य ज्ञान सुनाकर, सद्गति का रास्ता दिखा, दुःखों से मुक्त कर रहे हैं। यह गायन वर्तमान समय का ही है, जबकि कलियुग के अन्त और नई सृष्टि सतयुग के संगम पर, स्वयं परमात्मा अपने वायदे अनुसार इस धरा पर अवतरित हो चुके हैं , तथा इस दुःखमय संसार को सुखमय संसार में परिवर्तन करने का महान कार्य गुप्त रूप में करा रहे हैं।
शिवलिंग
महाशिवरात्रि के साथ जुड़े हुए आध्यात्मिक महत्व को समझने का ये सबसे अच्छा अवसर है। शिव-लिंग परमात्मा शिव के ज्योति रूप को दर्शाता है। परमात्मा का कोई मनुष्य रूप नहीं है और ना ही उसके पास कोई शारीरिक आकार है। भगवान शिव एक सूक्ष्म, पवित्र व स्वदीप्तिमान दिव्य ज्योति पुंज हैं। इस ज्योति को एक अंडाकार रूप से दर्शाया गया है। इसीलिए उन्हें ज्योर्तिलिंग के रूप में दिखाया गया है, अर्थात "ज्योति का प्रतीक"। वो सत्य है, कल्याणकारी हैं और सबसे सुंदर आत्मा है, तभी उन्हें सत्यम-शिवम्-सुंदरम कहा जाता है। वो सत-चित-आनंद स्वरूप भी है।
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