IND Analysis - मध्यप्रदेश में इसी साल के अंत में चुनाव होने हैं। इसी को देखते हुए 2023 की जंग शुरु हो गई है। एमपी के दोनों बड़े राजनैतिक दल सत्ताधारी बीजेपी और विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने अपनी अपनी तैयारियों की धार तेज कर दी है। ( IND Analysis ) दोनों ही दल का खास फोकस मालवा निमाड़ पर है।
मालवा निमाड़ से तय होता है सत्ता का सिंहासन
मध्यप्रदेश की सत्ता के लिए मालवा निमाड़ सबसे अहम माना जाता है। यही वो अंचल है जहां से एमपी की सत्ता के सिंहासन का रास्ता जाता है। यही कारण है की बीजेपी और कांग्रेस का खास फोकस इसी अंचल पर है।
मालवा निमाड़ है किंगमेकर
छत्तीसगढ़ से अलग होने के बाद से ही मालवा निमाड़ एक तरह से किंगमेकर बनकर उभरा है। इस अंचल में जिस दल को यहां कामयाबी मिली है, प्रदेश की सत्ता पर उसी का राजतिलक होता है। पिछले 5 विधानसभा चुनावों के नतीजे यही बयां करते हैं।
मालवा निमाड़ में 66 सीटें-जो जीता वही सिकंदर
मालवा निमाड़ में विधानसभा की सबसे ज्यादा 66 सीटें हैं, यही कारण है कि इस अंचल को जिसने फतह कर लिया वही सिकंदर कहलायेगा। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के हार की सबसे बड़ी वजह इस अंचल में सीटों का कम आना रहा। इसी के चलते बीजेपी को एमपी की सत्ता से बाहर होना पड़ा।

बीजेपी को 2018 चुनाव में हुआ नुकसान
2018 विधान सभा चुनाव में मालवा निमाड़ अंचल में बीजेपी को भारी नुकसान झेलना पड़ा। 66 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 28 सीटें मिली थीं। इस अंचल में कम सीटों के चलते ही सत्ता से बाहर होना पड़ा था।
कांग्रेस ने मारी इस अंचल में बाजी
2018 में जहां बीजेपी को 66 विधानसभा सीटों में मात्र 28 सीटें मिली, वहीं कांग्रेस ने यहां 35 सीटें जीतने में सफलता मिली। यही कारण रहा कि कांग्रेस का लंबे समय का सूखा समाप्त हुआ। क्योंकि 2003 के बाद से ही लगातार कांग्रेस सत्ता से बाहर रही। 2018 में कांग्रेस को सत्ता के सिंहासन पर बैठाने में इस अंचल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2013 चुनाव में बीजेपी को मिली थीं रिकार्ड 57 सीटें
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां से बंपर जीत हासिल हुई थी। बीजेपी 66 में 57 विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। कांग्रेस को 2013 में मात्र 9 सीटें हासिल हुई थीं। 2013 और 2018 के नतीजों के आधार पर सीटों का यही बड़ा अंतर बीजेपी और कांग्रेस की सरकारें बनवाने में अहम साबित हुआ था, लिहाजा 2013 में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मालवा-निमाड़ सबसे महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। दोनों ही दलों ने इस अंचल में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
आदिवासी संगठन जयस बीजेपी कांग्रेस के लिए बना चुनौती
मालवा निमाड़ में सबसे ज्यादा आदिवासी वोटर हैं, यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस का पूरा फोकस इस वर्ग पर है। वहीं आदिवासी संगठन जयस मालवा निमाड़ में ही अपनी सबसे ज्यादा पकड़ रखता है। पिछले साल जयस संगठन ने एक तरह से कांग्रेस का समर्थन किया था।आदिवासी वर्ग का साथ छूटने की कमी को बीजेपी यहां अब फिर से भरने की तैयारी में हैं। यही कारण है कि आदिवासी वर्ग को साधने के लिए सरकार ने कई योजनाओं के जरिए साधने की कोशिश की है।
मालवा निमाड़ है संघ की नर्सरी
इस अंचल में संघ का दखल सबसे ज्यादा है, यही कारण है कि इस अंचल को संघ की नर्सरी कहा जाता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत लगातार इस अंचल में गतिशील रहते हैं। माना जाता है की संघ की पकड़ का फायदा बीजेपी को यहां मिलता है। 2023 में भी संघ और बीजेपी की यही रणनीति है।
मालवा निमाड़ का सियासी गणित
- मालवा निमाड़ ने केवल विधानसभा बल्कि लोकसभा के लिहाज से भी अहम।
- 230 सीटों वाली प्रदेश विधानसभा में मालवा निमाड़ अंचल की 66 सीटें शामिल।
- मालवा निमाड़ में प्रदेश के 15 जिले और 2 संभाग आते हैं।
- मालवा निमाड़ में इंदौर,धार,खरगौन,खंडवा,बड़वानी,झाबुआ,अलीराजपुर जिला।
- उज्जैन,रतलाम,मंदसौर,शाजापुर,देवास,नीमच और आगर मालवा भी निमाड़ मालवा में आते हैं।
- 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मालवा निमाड़ ही रहा।
- 2018 में मालवा निमाड़ की 35 सीटोंपर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी।
- 2018 में मालवा निमाड़ में बीजेपी को केवल 28 सीटें मिली थीं।
- मालवा निमाड़ की वजह से ही कांग्रेस ने 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी।
- 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा निमाड़ को एक तरफा जीत दिलाई थी।
- 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा निमाड़ की 57 सीटों पर कब्जा किया था।
- 2013 में कांग्रेस को मिली थीं केवल 9 सीटें।
- मालवा निमाड़ में आदिवासी और किसान मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा।
- आदिवासी संगठन जयस मालवा निमाड़ में ही अपनी सबसे ज्यादा पकड़ रखता है।
- पिछले साल जयस संगठन ने एक तरह से कांग्रेस का समर्थन किया था।
- आदिवासी वर्ग का साथ छूटने की कमी को बीजेपी यहां अब फिर से भरने की तैयारी में हैं।
- मालवा निमाड़ संघ की नर्सरी माना जाता है। संघ का सबसे ज्यादा फोकस यहीं रहता है।
- 66 सीटों में से अब भाजपा के पास 33 और कांग्रेस के पास 30 सीटें हैं। 3 निर्दलीय विधायक हैं।
- मध्यप्रदेश में कुल 47 आदिवासी आरक्षित सीटें हैं, इनमें से 22 मालवा निमाड़ में हैं।
- पिछली बार आदिवासी आरक्षित 22 सीटों में 14 कांग्रेस और 7 भाजपा ने जीतीं।
आदिवासियों को रिझाने के लिए भाजपा सरकार ने योजनाओं का पिटारा खोल दिया है
माना जा रहा है 2023 के चुनावी मैदान में बीजेपी कांग्रेस के लिए ये अंचल चुनौती भरा होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए दोनों दल लगातार इस अंचल में अपनी धार को धारदार बनाने में लगे हैं, वहीं जयस सहित कई संगठन भी इस अंचल में अपना दमखम दिखा रहे हैं। 2023 में इस अंचल का मुकाबला दिलचस्प और कड़ा देखने को मिल सकता है।
WRITTEN BY: RAJESH SAXENA
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