प्रेरणा - एक ऐसा शब्द, जिसमें सकारात्मकता का असीम बोध होता हैं।
प्रेरणा - एक ऐसा शब्द, जिसमें सकारात्मकता का असीम बोध होता हैं। जीवन के उस सार्थक पहलू और उद्देश की तरफ अग्रसर करने का हमेशा संकल्प कराती रहती है, जिससे हम प्रयासों में और ऊर्जा तथा सार्थक गति दे सकने में सक्षम हो जाते है।
प्रेरणा, आत्मबल में ही अन्तर्निहित होती हैं। जितना ज्यादा आत्मबल उतनी सशक्त प्रेरणा या फिर जितनी सशक्त प्रेरणा उतना सशक्त आत्मबल। जब आत्मबल और अंत प्रेरणा एक साथ हिलोरें भरे, तो असंभव का बजूद तिनके के सदृश ही होगा। अतः प्रेरणा एक तरह की शक्ति प्रदान करती है, नकारात्मकता की धुन्ध को दूर करते हुए "नया सबेरा " देखने की ललक पैदा करती है।
प्रेरणा हमें उल्लास, उमंग और उम्मीदों के महज सपने ही नहीं दिखातीं ब्लकि उन्हें साकार करने में भी सक्षम होती है।
ठीक उसी तरह, जैसे -
एक प्रस्तर की मूर्ति के सामने हमारा शीश कब उस मूर्ति को निहारते-निहारते "वंदन भाव " में आ जाता - एहसास ही नहीं होता। महज अनुभूति होती है। बेहद सशक्त अनुभूति- उस अनुभूति में विचरते विचरते क्रियाहीन से हो जाते हैं, मूर्ति में सजीवता का दर्शन होता हैं और हम "प्रस्तरवत " हो जाते हैं।
यानी प्रेरणा सजीव को निर्जीव और निर्जीव को सजीव बनाने की सामर्थ्य रखती हैं।
कब उस प्रस्तर खंड में हमें "कात्यायनी देवी " का बोध हो जाये। पता नहीं।
सवाल हो सकता है देवी कात्यायनी ही क्यों ? क्योंकि
"प्रेरणा " एक "स्त्रीवाचक " शब्द है। प्रेरणा से उद्देश , उल्लास उत्साह, उमंग और लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती हैं। अर्थात "देवी कात्यायनी " के तत्वों की प्राप्ति संभव है।
आइए उस "अनंत सत्ता " से प्रेरणा ले, जो समस्त जीवों का कल्याण करे। इसलिए हो सके तो "प्रेरणा पुंज " बनिए और प्रेरित कीजिए । साथ ही प्रेरणा लीजिए भी ।क्योकि ,यही "प्रेरणा " का सार है।
Comments (0)