निकाय चुनाव में चेहरे चुनना दलों के लिए बना सिरदर्द
सुनील श्रीवास्तव
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव को सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है। राजनैतिक पंडितों कि माने तो जो भी दल इस चुनाव में सफलता हासिल करेगा, उसके लिए मिशन 2023 यानी विधानसभा चुनाव की राह आसान होगी। यही वजह है कि मध्यप्रदेश के दोनों सियासी दल प्रत्याशी चयन में पूरी सावधानी बरत रहे हैं। कांग्रेस चुनावी मैदान में 16 में से 15 नगर निगमों के प्रत्याशी घोषित कर भाजपा से एक कदम आगे जरूर निकल गई है, लेकिन रतलाम नगर निगम में प्रत्याशी को लेकर माथापच्ची जारी है। खबर है कि यहां पिता और पुत्र के कारण पार्टी उम्मीदवार तय नहीं कर पा रही है। मामला सुलझाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे विक्रांत भूरिया को बंगले बुलाया था। लंबी मंत्रणा के बाद भी कोई बात नहीं बन सकी है। वहीं भाजपा में बैठकों का दौर जारी है, नेताओं के फीडबैक से लेकर सिफारिशों के बीच कई नगर निगमों में महापौर प्रत्याशी को लेकर एक राय नहीं बन पा रही है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में सबसे ज्यादा रस्साकशी चल रही है, बेनतीजा रही मैराथन बैठकों के बाद अब गेंद पार्टी आलाकमान के पाले में चली गई है। यानी दिल्ली के दखल से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी अपने उम्मीदवार तय कर रही है। इस बार निकाय चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के क्राइटेरिया ने दोनों दलों के कई नेताओं के अरमानों पर पानी फेरने का काम जरूर किया है। कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने पार्षद प्रत्याशियों के लिए दिशा निर्देश जारी कर साफ कर दिया कि उम्मीदवार का उसी वार्ड का होना आवश्यक है। जिससे भोपाल समेत पूरे प्रदेश में उन नेताओं की तैयारियों पर पानी फिर गया है। जो दूसरे वार्ड से चुनाव लड़ने की जुगत में थे। वहीं भाजपा का यह क्राइटेरिया कि विधायक निकाय चुनाव नहीं लड़ेगें। पार्टी के लिए ही मुसीबत का सबब बन गया है। राजधानी भोपाल में भाजपा को एक जिताऊ चेहरे की दरकार है लेकिन वह खोज भी गोविंदपुरा से भाजपा विधायक कृष्णा गौर पर ही जाकर खत्म हो रही है, लेकिन क्राइटेरिया के फेर में दूसरे नामों को भी टटोला जा रहा है।
कृष्णा गौर महापौर प्रत्याशी के लिए बेहतर चेहरा मानी जा रही है। महापौर रहते हुए उन्होंने भोपाल के विकास के लिए बेहतर काम किए है। बावजूद इसके क्राइटेरिया का फेर ऐसा है कि कृष्णा गौर पर पार्टी फिलहाल कोई निर्णय नहीं ले पा रही है। जिसके बाद अब मालती राय, उपमा राय, राजो मालवीय और भारती कुंभरे जैसे नामों पर विचार चल रहा है। इस बार का नगरीय निकाय चुनाव जनता से पहले नेताओं की परीक्षा ले रहा है कि वह बेहतर उम्मीदवारों का चयन करें। टिकटार्थी भी अपने आकाओं की गणेश परिक्रमा कर टिकट रूपी प्रसाद की उम्मीद में है, तो कद्दावर नेता अपना रुतबा और रसूख बरकरार रखने ले लिए अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए जी-जान एक किये हुए हैं, क्योंकि इन टिकटों से ही उनका भी भविष्य तय होगा। चुनावी मैदान में उतरने को बेसब्र नेताओं के सामने इस बार दोहरी चुनौती है, एक तो पार्टी और अपने नेता की नाक बचाना और दूसरी जनता के विश्वास पर खरा उतरना। दोनों में से किसी एक में कमी होने का मतलब है मिशन 2023 की राह में खुद ही रोड़े बनना। यही वजह है कि मैराथन बैठकों से भाजपा उस अमृत रूपी उम्मीदवार की तलाश में है, जो उसे जीत का स्वाद चखा सके, तो वहीं कमलनाथ भी इस बार निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद में अपनी सियासी जमावट में जुटे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश का यह नगरीय निकाय चुनाव दोनों दलों के लिए साख और नाक के अलावा सत्ता के सिंहासन का जरिया भी है। इसलिए तो हम कह रहे हैं कि यह चुनाव नहीं आसां।
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