कवि प्रदीप को आप किसी एक गीत या एक रचना के फ्रेम में फिट करके उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का आकलन नहीं कर सकते. यह वो गीतकार, गायक और कवि था जिसने जो रचा वो कालजयी हो गया. उसकी लगभग तमाम रचनाएं समय और देशकाल की सीमाओं को तोड़कर इस ब्रह्माण्ड में अमर हो गईं. प्रदीप की रचनाओं में देशभक्ति उछाल मारती है तो प्रेम में समर्पण दिखलाई देता है. यहां टूटते रिश्ते और बिगड़ते माहौल का भी दर्द छलकता है. अधिंकाश गीतों में उन्होंने खुद ही आवाज दी.
महान कवि की पुण्यतिथि पर विनम्र अश्रुपूरित श्रध्दान्जली
साधारण व्यक्तित्व, लेकिन ओजस्वी लेखन के धनी कवि प्रदीप की आज पुण्यतिथि है. दादा साहब फाल्के पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गीतकार प्रदीप ने 11 दिसंबर, 1998 को मुंबई में अंतिम सांस ली थी. ऐ मेरे वतन के लोगो, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की, दे दी हमें आज़ादी, हम लाये हैं तूफ़ान से, दूर हटो ऐ दुनिया वालों, चल चल रे नौजवान सहित कवि प्रदीप के ऐसे तमाम देशभक्ति गीत हैं जिनकी बदौलत नौजवानों की रगों में देशभक्ति उछाले मारती है.
ऐ मेरे वतन के लोगों
ऐ मेरे वतन के लोगों गीत से जुड़ा वाकया तो लगभग हर किसी को पता है कि इस गीत को गाते हुए लता मंगेशकर रो पड़ी थीं. साठ के दशक में जब चीन ने भारत पर हमला कर दिया था, देश एक प्रकार से अघोषित युद्ध से जूझ रहा था. सीमा पर हमारे सैनिक शहीद हो रहे थे. तब उनकी याद में लता मंगेशकर ने गाया था. मौका था 26 जनवरी, 1963 का दिन. चीन के साथ युद्ध में मिली हार के बाद देश के सैनिकों और नौजवानों में फिर से उत्साह का संचार करने के लिए गणतंत्र दिवस के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुंबई में एक कार्यक्रम आयोजित किया था. इस कार्यक्रम के लिए उन्होंने कवि प्रदीप को एक गीत लिखने के लिए कहा. इस कार्यक्रम के लिए प्रदीप ने लिखा था- ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’. बताते हैं कि इस गीत को गाते हुए खुद लता मंगेशकर रो पड़ी थीं. इस गीत की बदौलत ही कवि प्रदीप को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित भी किया गया.
संतोषी मां के गीतों ने मचाया तहलका
किसी शायर, कवि या गीतकार की कामयाबी के हिस्से में उंगलियों पर गिनी जाने वाली चंद रचनाएं होती हैं, लेकिन कवि प्रदीप ने जो लिखा या जो गाया, वो कालजयी साबित हुआ. अब ‘संतोषी मां’ फिल्म की ही बात करें तो इसके सभी गीत सुपर-डुपर हिट साबित हुए. गुमनाम चेहरों वाली इस फिल्म ने गीतों की वजह से ही बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई की.‘मैं तो आरती ऊतारूं रे संतोषी माता की’, ‘यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां है संतोषी माँ’ और ‘करती हूं तुम्हारा व्रत में स्वीकार करो मां’ गीत आज भी मंदिरों और धार्मिक समारोह में सुने जा सकते हैं. यह हाल ‘हरिदर्शन’ फिल्म का है. इसके भजन आज भी हिट हैं.
रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी से कवि प्रदीप तक का सफर
कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी, 1915 को महाकाल की नगरी उज्जैन में हुआ था. उनका असली नाम रामचंद्र नारायणीजी द्विवेदी था. कवि प्रदीप की शिक्षा इंदौर के ही शिवाजी राव हाईस्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल से तालीम हासिल की.उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. कवि प्रदीप का लेखन की तरफ झुकाव शुरू से ही था. हिंदी काव्य में उनकी गहन रुचि थी. छात्र जीवन में ही वे कवि सम्मेलनों में भाग लेने लगे थे और उनकी रचनाएं खूब पसंद की जाती थीं.
कवि से गीतकार
कवि प्रदीप का लक्ष्य तो एक अध्यापक बनना था. इसके लिए उन्होंने टीचर ट्रेनिंग कोर्स- बीटीसी में भी दाखिला लिया. इस दौरान वे एक कवि के रूप में स्थापित हो चुके थे. उन्हें मुंबई में एक कवि सम्मेलन में शामिल होने का न्योता मिला था. कवि सम्मेलन में ‘बाम्बे टॉकीज स्टूडियो’ के मालिक हिंमाशु राय भी मौजूद थे और वे कवि प्रदीप की रचनाओं से बहुत प्रभावित हुए. हिंमाशु राय ने कवि प्रदीप के सामने फिल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने का प्रस्ताव रखा.
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