सावन मात्र एक ऋतु नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा को छू लेने वाला एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह वह कालखंड है जब आकाश से बूंदें नहीं, वरन् देवी-आशीर्वाद बरसते हैं। धरती माँ का आँचल हरियाली से सज जाता है और स्त्री का सौंदर्य, श्रृंगार और भावनात्मक गहराई अपने चरम पर पहुँचती है।
सावन मात्र एक ऋतु नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा को छू लेने वाला एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह वह कालखंड है जब आकाश से बूंदें नहीं, वरन् देवी-आशीर्वाद बरसते हैं। धरती माँ का आँचल हरियाली से सज जाता है और स्त्री का सौंदर्य, श्रृंगार और भावनात्मक गहराई अपने चरम पर पहुँचती है। यह ऋतु जीवन के तीन गूढ़ सूत्रों को एक सूत्र में पिरोती है — प्रकृति, नारी और परंपरा।
सावन: देवताओं का प्रिय मास
सनातन धर्म में सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। इस मास की प्रत्येक बूँद शिवत्व की भावना लिए होती है। कांवड़ यात्रा, जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जप — इन सभी कर्मों के पीछे एक ही ध्येय होता है, आत्मा का शुद्धिकरण और ब्रह्म के प्रति समर्पण। सावन में उपवास, व्रत, और जप-तप का जो वातावरण बनता है, वह तन के साथ-साथ मन को भी निर्मल करता है।
हरियाली: प्रकृति की मुस्कान
सावन के आते ही धरती पर हरियाली बिखर जाती है। पेड़-पौधे मानो वर्षा रानी के स्वागत में झूम उठते हैं। यह हरियाली केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन की उर्वरता, प्रजनन और पुनर्जन्म का सूचक है। ऋग्वेद में "वृक्षान् रक्षामः" का मंत्र बार-बार याद दिलाता है कि प्रकृति की रक्षा सनातन धर्म का मूल सिद्धांत है। प्रकृति को देवी स्वरूप माना गया — वसुंधरा, पार्वती, अन्नपूर्णा, लक्ष्मी — सभी स्वरूपों में हरियाली समाहित है।
स्त्री और श्रृंगार: सौंदर्य में साधना
सावन का महीना स्त्रियों के लिए सौंदर्य और श्रृंगार का उत्सव बनकर आता है। हाथों में मेंहदी, हरे वस्त्र, चूड़ियाँ, बिंदियाँ — ये सब केवल बाह्य सज्जा नहीं, बल्कि आंतरिक उमंग और श्रद्धा का प्रतिबिंब होते हैं। तीज-हरियाली जैसे पर्वों में स्त्रियाँ व्रत रखती हैं, गीत गाती हैं, झूले झूलती हैं और शिव-पार्वती के आदर्श दांपत्य की कामना करती हैं। यह श्रृंगार आत्मा के सौंदर्य को प्रकट करने का साधन बन जाता है।
तीनों तत्वों की त्रिवेणी
सावन, हरियाली और श्रृंगार — ये तीनों मिलकर सनातन संस्कृति की त्रिवेणी रचते हैं। जहाँ एक ओर सावन हमें शिव से जोड़ता है, वहीं हरियाली हमें पृथ्वी माँ के प्रति कृतज्ञ बनाती है और स्त्री के श्रृंगार में प्रकृति स्वयं अपना प्रतिबिंब देखती है। यह त्रिवेणी जीवन में सौंदर्य, भक्ति और चेतना का समन्वय कर एक समग्र दृष्टिकोण देती है।
सनातन दृष्टिकोण में ऋतु नहीं, अनुभव है
सावन कोई मात्र मौसम नहीं, यह एक अनुभव है — जीवन के प्रति प्रेम का, प्रकृति के प्रति श्रद्धा का और आत्मा के प्रति सजगता का। यह कालखंड हमें याद दिलाता है कि हम केवल उपभोक्ता नहीं, सृष्टि के सह-रचनाकार हैं। जब स्त्री श्रृंगार करती है, जब पेड़ हरे होते हैं, जब बूंदें गिरती हैं — तब ब्रह्मांड में एक अदृश्य परंतु गूढ़ सामंजस्य रचता है। यही है सनातन — जहाँ ऋतु, रति और ऋषि सभी एक ही धारा में प्रवाहित होते हैं।
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