सहमति की राजनीति के ध्वजवाहक अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के उन विरले नेताओं में थे, जिन्होंने मतभेदों के बावजूद संवाद और सहमति को प्राथमिकता दी। वे विपक्ष में हों या सत्ता में—उनका आचरण सदैव संयमित, शालीन और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप रहा।
सहमति की राजनीति के ध्वजवाहक अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के उन विरले नेताओं में थे, जिन्होंने मतभेदों के बावजूद संवाद और सहमति को प्राथमिकता दी। वे विपक्ष में हों या सत्ता में,उनका आचरण सदैव संयमित, शालीन और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप रहा। यही कारण था कि वे अपने विचारधारात्मक विरोधियों के बीच भी सम्मान के पात्र रहे।
सशक्त नेतृत्व और राष्ट्रीय गौरव
प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी ने भारत की आत्मविश्वासपूर्ण पहचान दुनिया के सामने स्थापित की। पोखरण परमाणु परीक्षणों से लेकर कारगिल युद्ध के समय लिए गए साहसिक निर्णयों तक,उन्होंने यह साबित किया कि सधे हुए स्वर में भी दृढ़ नेतृत्व किया जा सकता है। उनका लक्ष्य केवल सत्ता नहीं, बल्कि राष्ट्रहित था।
विकास के ‘अटल’ संकल्प
वाजपेयी की आर्थिक और विकासपरक दृष्टि ने देश को नई दिशा दी। स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं ने भारत की सड़कों को जोड़ा और अर्थव्यवस्था को गति दी। सरलीकरण, उदारीकरण और निवेश के अनुकूल वातावरण ने देश की विकास यात्रा को ठोस आधार प्रदान किया।
संवेदनशील हृदय और काव्य-मन
राजनेता होने के साथ-साथ वाजपेयी एक संवेदनशील कवि भी थे। उनके काव्य में जीवन, संघर्ष और मानवीय भावनाओं की अनुगूंज सुनाई देती है। यह आंतरिक संवेदनशीलता ही उनके सार्वजनिक जीवन में भी दिखाई देती थी,जहां वे विरोधी का तर्क सुनने और समझने की क्षमता रखते थे।
विरासत जो सदैव प्रेरित करेगी
अटल बिहारी वाजपेयी केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक थे। उन्होंने दिखाया कि विचारधारा का आग्रह रखते हुए भी भाषा और व्यवहार में शालीनता बनाए रखना संभव है। आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी विरासत यही संदेश छोड़ती है,नेतृत्व का असली अर्थ संयम, संवेदनशीलता और राष्ट्रहित के प्रति अटूट समर्पण है।
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