अमर्यादित भाषाओं और भाषणों के बीच जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का नाम आने लगे तो समझ लेना चाहिए कि चुनाव आने वाले हैं या फिर एक कारण और हो सकता है कि अपने द्वारा किये गए कुकृत्य को छुपाने की कोशिश में उसको अपनी जाति, समाज और धर्म के चोले में लपेट लो बस आपका काम ख़त्म बाकी सब वो धार्मिक लोग देख लेंगे जिन्हें धर्म का ध भी नहीं पता और जिस समाज की रक्षा की दुहाई देते हुए ये लोग मोर्चा खोलते हैं उसी समाज को उपहार स्वरूप देते हैं ऐसी तमाम घटनाएं जिन्हें देखकर लगता है कि ना ही देखते तो बेहतर था!
उदाहरण के लिए पिछले दिनों श्रीरामनवमी पर बंगाल समेत अन्य राज्यों में हुई हिंसा से समझते हैं !
30 मार्च 2023 मतलब कि चंद रोज़ पहले की बात है जब देश में एक त्यौहार मनाया गया, श्रीरामनवमी, त्यौहार, जिस दिन गोस्वामी बाबा तुलसीदास ने रामचरितमानस का लेखन प्रारंभ किया.
रामचरितमानस एक महाकाव्य कविता है जिसमें श्री राम के चित्र और चरित्र दोनों की बात की गई है और ये बताया गया है कि आप जीवन के किसी भी पड़ाव में हैं, कितनी ही समस्यायें और रास्ते असामान्य हों किंतु मनुष्य इतना कमज़ोर और असमर्थ कभी नही होता कि उसे अन्याय और अनैतिक रास्तों का चयन करना पड़े क्योंकि अंततः जीत सच्चाई की ही होती है.
रामनवमी या कोई अन्य धार्मिक त्यौहार जिसके बीते दिन ख़बरें आती थीं कि फलानी-फलानी जगह श्री रामनवमी को बड़ी धूम-धाम से मनाया गया और इसके उपलक्ष्य में तमाम शुभ कार्य भी सम्पन्न हुए.
लेकिन बीते कुछ सालों में एक पैटर्न बन गया है कि किसी भी धार्मिक त्यौहार पर हमें समाज में तनाव देखने को मिलता है और ये नया समाज एक अंधी दौड़ में शामिल है जिसके आगे बस धुआं है वो फ़िर अपने ख़ुद के भविष्य में लगी आग से ही क्यों ना उठा हो.
इतने दिनों बाद भी ऐसी ख़बरें सामने आती रहती हैं जिनमें धर्म के नाम पर आगजनी, तोड़फोड़ और पत्थरबाज़ी के वीडिओज सामने आते हैं और ऐसी हिंसात्मक घटनाओं के बाद एक सवाल जिसका आकार हर रोज़ बड़ा होता जा रहा है कि वो कौन लोग हैं जिनके इशारे पर ये हो रहा है या किया जा रहा है और इस बीच जिन राज्यों में ये सब हो रहा है वहां की सरकारें अपनी-अपनी आंखों पर ठंडा कपड़ा ओढ़ कर क्यों बैठी हैं ?
क्या ऐसी घटनाएं उनकी मंशा के अनुकूल हैं ?
या उनकी क्षमताओं के बाहर हैं ?
या फ़िर ये सब कुछ जानबूझ कर होने दिया जाता है ताकि अपने-अपने हिस्से की रोटियां इस हिंसा में धधकती आग जो ग़रीब और बेसहारों के घर-मक़ान, दुकान और जीवन में लगी है उस पर सेकी जा सकें.
प्रशासन और सरकारें इन घटनाओं से अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती क्योंकि भारत में ऐसे बहुत से त्यौहार मनाये जाते हैं जिनकी शोभायात्रा या जुलूसों में इस तरह की घटनाओं के घटने की संभावना होती है और इसीलिए प्रशासन द्वारा पहले ही अलग-अलग सम्प्रदाय के बुज़ुर्गों और पदाधिकारियों को बुलाया जाता है और सारी ब्यवस्थाएं पूर्ब में ही सुनिश्चित की जाती हैं.
जैसे शोभायात्रा या जुलूस का मार्ग क्या होगा या फ़िर जो क्षेत्र पहले से विवादित और संवेदनशील हैं उन पर अतिरिक्त सक्रियता होनी चाहिए वगैरा वगैरा.
तो फ़िर ये सक्रियता और व्यबस्था इस साल थोड़ी ज़्यादा और चाक चौबंद नहीं होनी चाहिए थी जब प्रशासन और सरकार दोनों को मालूम है कि रामनवमी और रमज़ान एक ही महीने में थे.
लेकिन आख़िर में ये बहस मंचो पर जाकर अलग-अलग तरीक़े से गजानन माधव मुक्तिबोध के वाक्य 'पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है' पर रुकती है और अंततः सरकार की नाक़ामयाबी और बिपक्ष की साज़िश पर जाकर ख़त्म हो जाती है और हम हरिवंशराय बच्चन की कविता 'जो बीत गयी सो बात गयी' समझकर भूल जाते हैं.
लेकिन क्या सिर्फ़ दोष सरकार, बिपक्ष, प्रशासन, असामाजिक तत्व और चंद सिरफ़िरे लोगों का है या कोई और भी दोषी है ?
जी हां हम और आप भी दोषी हैं क्योंकि जिसके नाम पर ये सब हो रहा है उस धर्म के कुछ स्वघोषित धर्मरक्षक और ठेकेदार हमें आकर बताते हैं कि हम और हमारा धर्म ख़तरे में है और किसी अन्य धर्म के त्यौहार मनाने से आपके धर्म की मान्यता और मानने वाले दोनों ख़त्म हो जाएंगे.
जबकि वो अपने भक्तों और शागिर्दों को ये नहीं बताते अपने निजी लोभ और लाभों को भूलकर कि धर्म उनके पैदा होने से पहले भी था और उनके मरने के बाद भी होगा और अग़र कोई धर्म इतना कमज़ोर है कि दूसरों की मान्यताओं से असुरक्षित होने लगे तो उसका ख़त्म हो जाना ही अच्छा है क्योंकि असुरक्षा इंसान में हो या समाज में वह भय पैदा करती है और भय हमारी सोच और प्रगति को संकुचित करता है.
इसलिए ज़रूरी है अपने-अपने आराध्य को ख़ुद समझना और उनके बारे में पढ़ना और उनके बताए रास्ते पर चलना नाकि स्वघोषित ठेकेदारों के चाहे आप किसी भी धर्म, पंथ या संप्रदाय को मानते हों.
ख़ैर इन सभी घटनाओं की ख़बरें और इन पर विशेषज्ञों की राय और सुझाव आपको अपने कंप्यूटर, फ़ोन और टेलीविजन के काले शीशों के ज़रिए मिल ही जाती होंगी लेकिन मैं आज बात करने की कोशिश करूंगा श्रीराम के बारे में जिनके जन्मोत्सव और नाम पर ये सब हुआ और हो रहा है और हां मेरी कोशिश इसलिए क्योंकि श्रीराम के बारे में कुछ भी लिखने और कहने से पहले शम्सी मिनाई का लिखा हुआ दोहरा देता हूं आप समझ जाएंगे.
मैं राम पर लिखूं, मेरी हिम्मत नहीं है कुछ।
तुलसी ने, बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ।।
कोशिश -:
श्रीराम एक नाम, श्रीराम एक युग, श्रीराम एक राजा, श्रीराम एक शासक, श्रीराम एक योद्धा, श्रीराम एक विजेता, श्रीराम एक दानी, श्रीराम एक बनवासी, श्रीराम एक तपस्वी, श्रीराम एक सामर्थ्य, श्रीराम एक मर्यादा, श्रीराम एक पुरुष, श्रीराम एक पुत्र, श्रीराम एक पति, श्रीराम एक मित्र, श्रीराम सम्पूर्ण चरित्र.
आप किसी भी क्षेत्र में काम करते हों या फ़िर उम्र के किसी भी पड़ाव में हैं परंतु श्रीराम हर स्थिति में एक प्रेरणा स्रोत हैं, भारतीय समाज में आदर्श, विनय, विवेक, मर्यादा, लोकतांत्रिक मूल्यवक्ता और संयम का नाम श्रीराम है.
लोकतांत्रिक इसलिए क्योंकि इतनी अपार क्षमताओं और सामर्थ्य के बावजूद सत्ता का तनिक भी लोभ ना होना और पूर्णता निष्पक्ष होना उन्हें सबसे बड़ा लोकनायक सिद्ध करती है.
श्रीराम का ब्यक्तित्व समाजवाद का सबसे बड़ा उदाहरण है और जो राजनैतिक दल अपने आप को समाजवादी होने का उत्तराधिकारी समझते हैं और जातिगत राजनीति करते हैं उन्हें जानना चाहिए कि प्रभु श्रीराम की मूल धारणा क्या है.
श्रीराम की भी जाति ढूंढने वालो को ये समझना चाहिए कि श्रीराम स्वयं एकता के प्रतीक हैं जो सबको एक साथ लेकर चले, वे किसी भी भेदभाव से परे हैं चाहे वो जातिगत हो, ऊंच-नीच, छुआ-छूत उनके लिए सब एक समान हैं और उनका रिश्ता सबसे समान प्रेमभाव से है चाहे वे नर, वानर, आदिवासी, पशु, मानव, दानव, निषादराज, सुग्रीव, शवरी, जटायु, हनुमान या उनके अनुभ्राता, इसीलिए वे किसी के भाई, किसी के स्वामी, किसी के मित्र तो किसी के लिए न्यायप्रिय राजा हैं.
और उनके भक्त भी ऐसे ही हैं जिनके लिए गोस्वामी बाबा तुलसीदास ने लिखा है-
तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख, दास भए भव पार।।
श्रीराम साध्य हैं साधन नहीं लेकिन कुछ राजनैतिक दलों और नेताओं ने उन्हें अपना साधन बना लिया है और अपने-अपने हिसाब से अपनी-अपनी मंज़िल तय करने के लिए और अपनी प्रतिस्पर्धा में जीत के लिए उनका उपयोग करते हैं.
लेकिन इन्हें ये जानना होगा कि श्रीराम महान हैं और महानता खुले आसमान की तरह समावेशी होती है वहां स्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है इसीलिए उन्होंने अपने दल में हर एक व्यक्ति को एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी और उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया कि आपसे बेहतर इसे कोई और नहीं कर सकता, बिना इस बात की चिंता किए कि उसके रिज्यूमे में उस क्षेत्र का अनुभव है या नहीं उन्होंने सिर्फ़ योग्यता को अवसर दिया और अमर कर दिया.
इसलिए श्रीराम महानायक है.
उनके नाम पर भड़काऊ भाषा और रौद्र रस में तमाम मर्यादा की सीमाओं को लांघने वाले हमारे माननीय और सम्मानीय नेताओं को पता होना चाहिए कि जिनके नाम पर आप आंखों में अंगारे और भूखे, बेरोजगार और बेचारे युवाओं को दिशाहीन बना रहे हैं वो प्रभु श्रीराम तो करुणा से भरे हैं इसीलिए वे करुणानिधि हैं.और इसी बात के लिए निर्गुण धारा के सबसे बड़े कवि कबीर ने भी श्रीराम को समझने के लिए लिखा है कि -
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा
एक राम का सकल पसारा, एक राम है सबसे न्यारा
जग में चार राम हैं, तीन सकल ब्यवहार
चौथा राम निज सार है, उसका करो विचार.
और जो सच में श्रीराम के भक्त हैं और उन्हें उनपर अनंत विश्वास है वो अपनी श्रद्धा और विनती गोस्वामी बाबा तुलसीदास की लिखी इस चौपाई में रखते हैं -
मूक होई बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपा सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन।।
अंत में श्रीराम के लिए हमारे देश के राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने भी लिखा है-
राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है.
सीताराम!
WRITTEN BY - RAAJ SHARMA.
इतने दिनों बाद भी ऐसी ख़बरें सामने आती रहती हैं जिनमें धर्म के नाम पर आगजनी, तोड़फोड़ और पत्थरबाज़ी के वीडिओज सामने आते हैं और ऐसी हिंसात्मक घटनाओं के बाद एक सवाल जिसका आकार हर रोज़ बड़ा होता जा रहा है कि वो कौन लोग हैं जिनके इशारे पर ये हो रहा है या किया जा रहा है और इस बीच जिन राज्यों में ये सब हो रहा है वहां की सरकारें अपनी-अपनी आंखों पर ठंडा कपड़ा ओढ़ कर क्यों बैठी हैं ?
क्या ऐसी घटनाएं उनकी मंशा के अनुकूल हैं ?
या उनकी क्षमताओं के बाहर हैं ?
या फ़िर ये सब कुछ जानबूझ कर होने दिया जाता है ताकि अपने-अपने हिस्से की रोटियां इस हिंसा में धधकती आग जो ग़रीब और बेसहारों के घर-मक़ान, दुकान और जीवन में लगी है उस पर सेकी जा सकें.
प्रशासन और सरकारें इन घटनाओं से अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती क्योंकि भारत में ऐसे बहुत से त्यौहार मनाये जाते हैं जिनकी शोभायात्रा या जुलूसों में इस तरह की घटनाओं के घटने की संभावना होती है और इसीलिए प्रशासन द्वारा पहले ही अलग-अलग सम्प्रदाय के बुज़ुर्गों और पदाधिकारियों को बुलाया जाता है और सारी ब्यवस्थाएं पूर्ब में ही सुनिश्चित की जाती हैं.
जैसे शोभायात्रा या जुलूस का मार्ग क्या होगा या फ़िर जो क्षेत्र पहले से विवादित और संवेदनशील हैं उन पर अतिरिक्त सक्रियता होनी चाहिए वगैरा वगैरा.
तो फ़िर ये सक्रियता और व्यबस्था इस साल थोड़ी ज़्यादा और चाक चौबंद नहीं होनी चाहिए थी जब प्रशासन और सरकार दोनों को मालूम है कि रामनवमी और रमज़ान एक ही महीने में थे.
लेकिन आख़िर में ये बहस मंचो पर जाकर अलग-अलग तरीक़े से गजानन माधव मुक्तिबोध के वाक्य 'पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है' पर रुकती है और अंततः सरकार की नाक़ामयाबी और बिपक्ष की साज़िश पर जाकर ख़त्म हो जाती है और हम हरिवंशराय बच्चन की कविता 'जो बीत गयी सो बात गयी' समझकर भूल जाते हैं.
लेकिन क्या सिर्फ़ दोष सरकार, बिपक्ष, प्रशासन, असामाजिक तत्व और चंद सिरफ़िरे लोगों का है या कोई और भी दोषी है ?
जी हां हम और आप भी दोषी हैं क्योंकि जिसके नाम पर ये सब हो रहा है उस धर्म के कुछ स्वघोषित धर्मरक्षक और ठेकेदार हमें आकर बताते हैं कि हम और हमारा धर्म ख़तरे में है और किसी अन्य धर्म के त्यौहार मनाने से आपके धर्म की मान्यता और मानने वाले दोनों ख़त्म हो जाएंगे.
जबकि वो अपने भक्तों और शागिर्दों को ये नहीं बताते अपने निजी लोभ और लाभों को भूलकर कि धर्म उनके पैदा होने से पहले भी था और उनके मरने के बाद भी होगा और अग़र कोई धर्म इतना कमज़ोर है कि दूसरों की मान्यताओं से असुरक्षित होने लगे तो उसका ख़त्म हो जाना ही अच्छा है क्योंकि असुरक्षा इंसान में हो या समाज में वह भय पैदा करती है और भय हमारी सोच और प्रगति को संकुचित करता है.
इसलिए ज़रूरी है अपने-अपने आराध्य को ख़ुद समझना और उनके बारे में पढ़ना और उनके बताए रास्ते पर चलना नाकि स्वघोषित ठेकेदारों के चाहे आप किसी भी धर्म, पंथ या संप्रदाय को मानते हों.
ख़ैर इन सभी घटनाओं की ख़बरें और इन पर विशेषज्ञों की राय और सुझाव आपको अपने कंप्यूटर, फ़ोन और टेलीविजन के काले शीशों के ज़रिए मिल ही जाती होंगी लेकिन मैं आज बात करने की कोशिश करूंगा श्रीराम के बारे में जिनके जन्मोत्सव और नाम पर ये सब हुआ और हो रहा है और हां मेरी कोशिश इसलिए क्योंकि श्रीराम के बारे में कुछ भी लिखने और कहने से पहले शम्सी मिनाई का लिखा हुआ दोहरा देता हूं आप समझ जाएंगे.
मैं राम पर लिखूं, मेरी हिम्मत नहीं है कुछ।
तुलसी ने, बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ।।
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