पिछले कुछ दिनों से ऐसी ख़बरें लगातार आ रही हैं जिन्हें देखकर, सुनकर और पढ़कर महिलाओं के बारे में एक तरफ़ा राय बनाने की कोशिश की जा रही है लेकिन इन सबके उलट संजना जैसी प्रेरित करती महिलाएं भी हमारे सामने हैं जो प्यार, प्रतिष्ठा और परिवार को एक ही सीट पर बैठाकर गाड़ी चलाती हैं और नज़ीर बन जाती हैं !
पिछले कुछ दिनों से ऐसी ख़बरें लगातार आ रही हैं जिन्हें देखकर, सुनकर और पढ़कर महिलाओं के बारे में एक तरफ़ा राय बनाने की कोशिश की जा रही है लेकिन इन सबके उलट संजना जैसी प्रेरित करती महिलाएं भी हमारे सामने हैं जो प्यार, प्रतिष्ठा और परिवार को एक ही सीट पर बैठाकर गाड़ी चलाती हैं और नज़ीर बन जाती हैं !
आइए हम पूरी ख़बर परोसते हैं आपके लिए –
दरअसल ख़बर बिहार राज्य के जमुई जिले से ताल्लुक़ रखती है जहां के रहने वाले जीतेंद्र शार्दुल और कुमारी संजना के बारे में ये है, और प्रसिद्ध कहावत कि ‘हर क़ामयाब आदमी के पीछे एक महिला का हाथ होता है’ में जो महिला हैं उनका नाम है कुमारी संजना जिन्होंने अपने गहने-जेवर बेच कर अपने पति जीतेंद्र शार्दुल को उनके लक्ष्य तक पहुंचाया और साथ-साथ खुद भी अपना सफ़र तय करके अपनी मंजिल तक पहुंची !
कहानी शुरू होती है साल 2002 में जब आर्थिक रूप से संपन्न कुमारी संजना के पिता (बिजली विभाग में लाइन इंस्पेक्टर) ने संजना के अलावा घर में कोई संतान ना होने की वजह से बेरोजगार और आर्थिक रूप से ग़रीब जीतेंद्र शार्दुल को घर जमाई बनाने की मंशा से अपनी इकलौती बेटी कुमारी संजना की शादी जीतेंद्र शार्दुल से कर दी लेकिन ग़रीब आदमी के पास धन के साथ-साथ स्वाभिमान भी ना हो ऐसा तो ज़रूरी नहीं है ना, बस इसीलिए जीतेंद्र शार्दुल ने घर जमाई बनने से इनकार कर दिया और कुमारी संजना के साथ अपने घर में रहने लगा !
चूंकि शादी के बाद जिम्मेदारियों के चलते जीतेंद्र के घरवालों ने भी उसे मजदूरी और अन्य कामों के लिए कहना शुरू कर दिया लेकिन उसे आगे पढाई करके सरकारी नौकरी चाहिए थी और इस सपने को साकार करने में उसकी अर्धांगिनी कुमारी संजना ने उसका पूरा साथ दिया, और अपने मायके से मिले गहने और जेवर तक को बेचकर उसकी पढाई में कोई बाधा नहीं आने दी !
चूंकि कुमारी संजना भी मैट्रिक पास ही थी इसलिए साथ-साथ उन्होंने भी अपनी पढाई जारी रखी और पढ़ती रहीं, संजना के पिता आर्थिक रूप से संपन्न थे इसलिए इस दौरान संजना ने उनसे भी मदद ली !
इस संघर्ष और त्याग का परिणाम ये हुआ कि 2007 में जीतेंद्र शार्दुल को सरकारी अध्यापक की नौकरी मिल गई और आगे 2014 में कुमारी संजना ने भी सरकारी नौकरी हासिल कर ली !
ज़ाहिर सी बात है कि ये संघर्ष एक खबर में तो नहीं समेटा जा सकता क्यूंकि इसके बीच समय की सुई अच्छे बुरे सभी अनुभवों से गुजरी होगी इसलिए कुमारी संजना जैसी महिलाएं हमेशा प्रेरणा का स्त्रोत होती हैं !
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