आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में जब हम स्वास्थ्य को लेकर सजग होते जा रहे हैं, तब हमारे भोजन का सबसे आवश्यक और प्राकृतिक भाग — फल — अब संदेह के घेरे में है। फल, जो कभी जीवन शक्ति और पोषण का प्रतीक माने जाते थे, अब तेजी से मुनाफ़ा कमाने की लालसा में केमिकल से पकाए जा रहे हैं, और यह प्रक्रिया हमारे स्वास्थ्य पर खतरनाक प्रभाव डाल रही है।
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में जब हम स्वास्थ्य को लेकर सजग होते जा रहे हैं, तब हमारे भोजन का सबसे आवश्यक और प्राकृतिक भाग — फल — अब संदेह के घेरे में है। फल, जो कभी जीवन शक्ति और पोषण का प्रतीक माने जाते थे, अब तेजी से मुनाफ़ा कमाने की लालसा में केमिकल से पकाए जा रहे हैं, और यह प्रक्रिया हमारे स्वास्थ्य पर खतरनाक प्रभाव डाल रही है।
आजकल बाजार में आम, केला, पपीता, सेब जैसे फलों को प्राकृतिक तरीके से पकने नहीं दिया जाता। उनकी चमक और परिपक्वता तो आपको आकर्षित कर सकती है, लेकिन इनका असली चेहरा कैल्शियम कार्बाइड और एथीलीन जैसे रसायनों से ढका हुआ होता है, जो हमारी सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। कैल्शियम कार्बाइड के संपर्क में आने पर यह फल एसिटिलीन गैस छोड़ते हैं, जिससे फल जल्द पकते हैं, लेकिन भीतर से अधपके और पोषक तत्वविहीन रह जाते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार कैल्शियम कार्बाइड में मिलावट के रूप में आर्सेनिक और फॉस्फीन जैसे ज़हरीले पदार्थ पाए जा सकते हैं, जो मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र, लीवर और किडनी पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। लगातार ऐसे फलों के सेवन से सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, उल्टी, डायरिया जैसी परेशानियाँ हो सकती हैं। कुछ मामलों में तो यह मिर्गी, तंत्रिकीय क्षति और यहां तक कि कैंसर जैसी घातक बीमारियों को भी जन्म दे सकते हैं।
इसका सबसे बुरा प्रभाव बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं पर देखा गया है। बच्चों की मानसिक और शारीरिक वृद्धि पर यह रसायन अवरोध पैदा कर सकते हैं। गर्भवती महिलाओं में यह गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्कीय विकास को प्रभावित कर सकता है। शरीर के अंगों को धीमे-धीमे क्षीण करने वाले यह फल, दिखने में भले ही सुंदर हों, लेकिन असल में ये मीठे ज़हर से कम नहीं।
इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी है कि हम सजग उपभोक्ता बनें। हमेशा ऐसे फल खरीदें जो स्थानीय किसानों से सीधे प्राप्त हों या जिनमें ‘प्राकृतिक रूप से पके’ या ‘ऑर्गेनिक’ होने का भरोसा हो। घर लाने के बाद फलों को साफ पानी या नमक मिले गुनगुने पानी में धोना एक अच्छी आदत है। शक होने पर फलों का छिलका अवश्य हटाएं क्योंकि अधिकांश रसायन वहीं टिके रहते हैं।
यह भी जरूरी है कि सरकार खाद्य सुरक्षा कानूनों को सख्ती से लागू करे और बाजार में बिकने वाले फलों की नियमित रूप से जांच हो। जिस प्रकार सब्जियों में कीटनाशकों को लेकर जनचेतना फैली है, उसी तरह फलों को लेकर भी रासायनिक मिलावट के खिलाफ एक जनआंदोलन की ज़रूरत है।
आज हम जिस दिशा में जा रहे हैं, वहां से लौटना मुश्किल हो सकता है यदि हमने समय रहते नहीं सोचा। इसलिए, अब ज़रूरत है जागरूक होने की — ताकि फल केवल स्वाद ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य भी दे सकें। स्वस्थ समाज की नींव सिर्फ पोषण से नहीं, शुद्ध पोषण से बनती है — और इसके लिए हमें रासायनिक जहर के इस खेल को समझना होगा, रोकना होगा।
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