शराब, जिसका वजूद इतना पुराना है कि, समुद्र मंथन से लेकर भारतीय दर्शन तक सब में इसे लेकर मारामारी हुई है। शराब, जिसे धर्मस्थलों से अच्छा बताकर लिखा गया कि, बैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला। वहीं भारतीय भौतिकवादी नास्तिक दर्शन चार्वाक ने तो इसे ( शराब) सबसे बड़ा सुख बताकर अपना सूत्र वाक्य लिख दिया।
मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला
शराब, जिसका वजूद इतना पुराना है कि, समुद्र मंथन से लेकर भारतीय दर्शन तक सब में इसे लेकर मारामारी हुई है। शराब, जिसे धर्मस्थलों से अच्छा बताकर लिखा गया कि, बैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला। वहीं भारतीय भौतिकवादी नास्तिक दर्शन चार्वाक ने तो इसे ( शराब) सबसे बड़ा सुख बताकर अपना सूत्र वाक्य लिख दिया। पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा, यावत् पतति भूतले, उत्थाय च पुनः पीत्वा, पुनर्जन्म न विद्यते, माने पियो, पियो और फिर पियो। जब तक कि जमीन पर न गिर पड़ो। उठो फिर पियो, अगला जन्म किसने देखा है। शराब, किसी के लिए सुख तो किसी के लिए दुख का विषय है, लेकिन वास्तव में शराब इनमें से कुछ भी नहीं है। दरअसल, शराब का सेवन बाकी पेय पदार्थों की तरह ही। जरूरत, क्षमता, सक्षमता और गुणवत्ता का चुनाव मात्र है।जानेंगे लिकर से जुड़े कुछ Important facts…
1. शराब या फिर किसी भी मादक पेय पदार्थ में इथेनॉल होता है, जोकि एक जहरीला पदार्थ है और मनोविज्ञान के अनुसार ये लत पैदा कर सकता है।
2. एक सर्वे के अनुसार साल 2019 में दुनिया भर में शराब के सेवन से लगभग 2.6 मिलियन मौतें हुई हैं, इनमें गैर संचारी रोग और संचारी रोग (परिभाषा बताएंगे) शामिल हैं
3. अनुमान है कि 15 वर्ष से अधिक आयु के लोग, विश्व की 7% आबादी या 400 मिलियन लोग शराब संबंधी विकारों से पीड़ित हैं।
4. रिपोर्ट्स का मानना है कि शराब से संबंधित अधिकांश नुकसान सस्ती और निम्न मानक की शराब और इसके अत्यधिक मात्रा में सेवन से होता है।
5. शराब पर नियंत्रण के लिए प्रभावी उपाय मौजूद हैं लेकिन उनके अधिक से अधिक उपयोग किए जाने की जरूरत है।
6. शराब के नुकसान जानने और इन्हें कम करने के लिए महत्वपूर्ण है कि तमाम पूर्वाग्रहों को छोड़कर इस पर खुलकर बात हो क्योंकि गुणवत्ता सुधार और स्वास्थ्य एवं सस्ती शराब के नुकसानों के प्रति जागरूकता ही एक मात्र कारगर उपाय है।
15 सालों में शराब की खपत दोगुनी से ज्यादा बढ़ी है
हमें मालूम है कि, देश के कई राज्यों में सरकारी कागजों पर शराबबंदी है, लेकिन ये सिर्फ अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग के अलावा कुछ भी नजर नहीं आती। इसके भी पर्याप्त उदाहरण मौजूद हैं, क्योकि रिपोर्ट्स ये कहती हैं कि, शराबबंदी से शराब के सेवन पर कोई असर नहीं हुआ है, बल्कि जिन राज्यों में शराबबंदी है। देश के साथ-साथ उन राज्यों में भी। पिछले 10 से 15 सालों में शराब की खपत दोगुनी से ज्यादा बढ़ी है। बता दें कि, शराबबंदी का वास्तविक चेहरा ये है कि, जहां शराबबंदी है वहां पिछले कुछ सालों में ही सैकड़ों लोग सस्ती और खराब गुणवत्ता की शराब पीने से असमय में मरे हैं और ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, ये विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कह रही हैं।2005 में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 2.4 लीटर थी
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2005 में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 2.4 लीटर थी, जो साल 2016 में बढ़कर 5.7 लीटर हो गई। वहीं साल 2025 तक इसमें और इजाफा होने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक, शराब पीने से 2016 में दुनियाभर में 30 लाख लोगों की मौत हुई, जो एड्स, हिंसा और सड़क हादसों से होने वाली मौतों के आंकड़े से कई भी ज्यादा है।भारत में प्रति व्यक्ति शराब की खपत
2005 में 2.4 लीटर
2016 में 5.7 लीटर
2025 में 7.9 लीटर (अनुमानित)
अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है
बता दें कि, शराबबंदी पर रोक इस समस्या का हल बिल्कुल नहीं है। बिहार में शराबबंदी है, लेकिन हाल ही में आई कुछ खबरें यह बताती हैं कि, शराबबंदी के बावजूद। राज्य में कई हजार करोड़ की अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है। इसी के साथ बिहार के छपरा, सिवान और सारण जैसे जिलों में जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं।शराब पीने से खुद की जान जोखिम में डालते हैं
आंकड़े और मौजूदा हालात गवाह हैं कि, लगातार शराब का लगातार सेवन कर रहे लोगों को शराब की लत लगने से नहीं रोका जा सकता है और ना ही शराबबंदी करने से शराबबंदी के बावजूद लोग नए-नए तरीकों से प्रशासन- शासन की नाक के नीचे तस्करी करते हैं या फिर निम्न गुणवत्ता की शराब पीने से खुद की जान जोखिम में डालते हैं।सरकार और साहित्य दोनों का अपना मिजाज होता है
सरकार और साहित्य दोनों का अपना मिजाज होता है और ये भी सच है कि, देश में जितने लोग राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं। साहित्य के समर्थक भी उनसे कम नहीं। जहां मंच पर नेताजी अपने भाषणों में शराब को अभिशाप बताते हैं। वहीं शायर और कविवर इसे शाम के लिए सहज और सामाजिक तत्व बताकर, ऐसे बखान करते हैं कि, कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई, आओ कहीं शराब पियें रात हो गई, लेकिन भाषणों को मंच पर और कविताओं को किताबों में छोड़कर अगर देखें तो पता चलता है कि, इन दोनों से ही काम नहीं चलेगा। जागरूकता ही मात्र पहला और आखिरी उपाय है।1. भारत दुनिया में शराब का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है
2. भारत में 66.3 करोड़ लीटर एल्कोहल कंज्यूम किया जाता है
3. 2017 से अब तक इसमें 11 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है
4. भारतीय, अमेरिकन के मुकाबले हर साल 3 गुना ज्यादा व्हिस्की गटक जाते हैं
5. देश में 45 फीसदी से ज्यादा शराब की खपत आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में है
6. इन राज्यों की कमाई का 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सा शराब की बिक्री से आता है
7. शराब की खपत वाले 6 और टॉप राज्य - पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र
भारत में शराब की खपत बढ़ी है
दरअसल, कोविड-19 जो मानव इतिहास में एक डरावने समय के तौर पर याद किया जाएगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि, इस दौरान भी भारत में शराब की खपत बढ़ी है। खासकर जिन राज्यों में शराबबंदी है। वहां लॉकडाउन के दौरान लोगों ने अवैध और निम्न गुणवत्ता की शराब महंगे दामों पर खरीदी है जिससे जान और माल दोनों का नुकसान हुआ। वहीं इस बात से ये साफ है कि, शराबबंदी की जगह इसकी कीमतों में इजाफा, उच्च मानक संगत और राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यवस्थित नीति बनाना। एक अच्छा उपाय हो सकता है, ताकि लोग विशेष अवसर और क्षमता के हिसाब से इसका सेवन करें। WHO के शराब को लेकर भारत में हुए सर्वे के आंकड़ों में भी इसकी जरूरत साफ दिखाई देती है।1. देश में एक-तिहाई पुरुष शराब पीते हैं, 10 से 75 साल की उम्र के 14 फीसदी लोग शामिल
2. WHO का अनुमान है कि 11 फीसदी भारतीय शराब पीते हैं जबकि वैश्विक औसत 16 फीसदी है
3. चिंता की बात ये है कि शराब पीने वाले एक-तिहाई लोग सस्ती और नकली शराब पीते हैं
4. भारत में कई हादसों की वजह मिलावटी, ज़हरीली और नकली शराब
5. WHO के अनुसार भारत में पी जाने वाली 50 फीसदी शराब अनरिकॉर्डेड होती है
बड़ी तादाद में लोग देशी घी से बनी शराब पसंद करते हैं
इंटरनेशनल अलायंस फॉर रेस्पॉन्सिबल ड्रिंकिंग (IARD) ने 2014 में एक सर्वे करवाया, जिसके मुताबिक देश में एक बड़ी तादाद में लोग देशी, घर में बनी हुई शराब पीना पसंद करते हैं, जोकि अक्सर ज़हरीली और मिलावटी होती है। जो शराब के कारण हुई मौतों का एक बड़ा कारण है।शराब को बढ़ावा देने वाले किसी भी तरह के विज्ञापन पर रोक है
कहने को हमारे देश में शराब को बढ़ावा देने वाले किसी भी तरह के विज्ञापन पर रोक है। टीवी, न्यूज पेपर या किसी भी मैग्जीन में इसके पोस्टर और वीडियो का सीधा प्रचार नहीं देखा जाता है। जब भी किसी फिल्म या शो में इसका इस्तेमाल दिखाया जाता है, तो इसके सेवन के दौरान वैधानिक चेतावनी चिपका दी जाती है, लेकिन इतनी पाबंदियों के बाद भी देश में शराब की खपत साल-दर-साल बढ़ रही है। शराब का दूसरा पहलू ये बी है कि, जो लोग इसे शौकिया तौर पर पीते हैं। वे बहुत सीमित, नियंत्रित मात्रा और कभी-कभार पीते हैं, या ऐसे सामाजिक, व्यावसायिक आयोजनों में पीते हैं। जहां इसका शिष्टता और सामाजिक तौर-तरीकों के उच्च मानकों में पालन होता है। यह बात हैरान करने बाली है लेकिन यथार्थ है और इसके लिए हमारे सुरक्षा बलों के पारिवारिक और सामाजिक आयोजन बेहतर उदाहरण हैं। वहीं इस प्रकार के आयोजनों को सामान्यत: कॉकटेल पार्टी, वाइन टेस्टिंग और सोशल ड्रिंकिंग इवेंट का नाम दिया जाता है।शराब पीने वालों के पास अब इतने ज्यादा विकल्प हैं
जहां शराब का सेवन संयमित और शिष्ट व्यवहार के साथ किया जाता है, ऐसे ही कई व्यावसायिक आयोजनों में कॉर्पोरेट कॉकटेल पार्टी, नेटवर्किंग इवेंट, बिज़नेस सोशल ड्रिंकिंग इवेंट्स का आयोजन किया जाता है। जिनका उद्देश्य व्यावसायिक नेटवर्किंग संबंध निर्माण और व्यापारिक चर्चाओं को प्रोत्साहित करना होता है। जिसमें शराब मात्र एक सहज सामाजिक तत्व के रूप में शामिल होता है। यहां तक कि देश में लगातार बार और रेस्ट्रो-बार की संख्या बढ़ रही है। वहीं शराब पीने वालों के पास अब इतने ज्यादा विकल्प हैं कि, उन्हें मेन्यू में से अपनी पसंद ढूंढ़नी पड़ती है। बता दें कि पिछले दो दशकों के भीतर बार के मेन्यू के पेजों की संख्या 50 तक पहुंच गई है। इतना ही नहीं बार और रेस्ट्रो-बार में आने वाले लोगों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है। जिसमें शराब खरीदने वालों में 20 साल से कम उम्र के लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है।शराब का व्यापार और बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है
देश के हर बजट सत्र में अर्थव्यवस्था के साथ-साथ शराब का व्यापार और बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है। बाजार शोध संस्था यूरोमेंटल इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 10 सालों में भारत में शराब का कारोबार लगभग दोगुना हो चुका है। वहीं खपत की बात करें तो आंकड़े बताते हैं कि, 2008 से लेकर 2018 बीच 16,098 लाख लीटर से बढ़कर 27,382 लाख लीटर हो गई है। जिसमें बीयर और वाइन के आंकड़े शामिल नहीं हैं।प्रोग्राम की प्लेट स्वाईप होगी
हमारे देश में सदियों से कई तरह के फल, फूल और अनाज से मादक पेय बनाने की समृद्ध परंपरा चली आ रही है। जिसका इस्तेमाल खासकर जनजातीय समूह औषधि के तौर पर करते हैं। वहीं मध्यप्रदेश में तो महुआ से बनी शराब को हेरिटेज ड्रिंक की श्रेणी में रखा गया है। जिसको आदिवासी सहकारिया समूह बेचने की अनुमति भी देता है। फल, फूल और अनाज से अपने-अपने स्तर पर मादक पेय बनाना। हमारे देश में सदियों से चला आ रहा है। फलों से बने कुछ पारंपरिक मादक पेय पदार्थों में जम्बू-असव (जामुन वाइन), शाहकारसव, महासाव (आम वाइन), कौला (बेर वाइन) और थाटी कल्लू (पाम वाइन) शामिल हैं। इसी तरह महुआ का इस्तेमाल भी शराब बनाने में किया जाता है।उत्तर पूर्व में चावल से बीयर और वाइन बनाई जाती है
वहीं उत्तर पूर्व में चावल से बीयर और वाइन बनाई जाती है। भारत में पारंपरिक शराब बनाने की विधियां सदियों से चली आ रही हैं। साल भर फलों और कई फसलों की प्रचुरता से विभिन्न प्रकार की शराब बनाने की शैलियों के कई अवसर मिलते हैं। ये पारंपरिक पेय पदार्थ अक्सर स्वदेशी ज्ञान और विधियों से तैयार किए जाते हैं। ये भारत में ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हालांकि जागरूकता, उचित ब्रांडिंग और प्रचार की कमी के कारण। ये पारंपरिक पेय अक्सर मुख्यधारा के मादक पेय के साथ प्रतिस्पर्धा की दौड़ में शामिल नहीं हैं। पारंपरिक मादक पेय पदार्थों के अलावा भारत विभिन्न प्रकार के गैर-पारंपरिक पेय पदार्थों का भी घर है। जिनमें बीयर, ब्रांडी, रम, वोदका, व्हिस्की, वाइन और ठंडे नशीले शरबत शामिल हैं।मप्र में महुआ के फूल से बनने वाली हेरिटेज
मप्र में महुआ के फूल से बनने वाली हेरिटेज मदिरा को पहचान दिलाने के लिए आबकारी नीति के अंतर्गत। साल 2022 में नियम बनाए गए हैं। इसका उत्पादन सिर्फ जनजातियों के लिए अधिसूचित क्षेत्रों में और जनजातियों के स्व सहायता समूह ही कर सकते हैं। विक्रय के लिए विनिर्माण इकाई के परिसर में दुकान भी खोली जा सकती है। जिसे विस्तार देने का निर्णय लिया गया है। भारत में वर्तमान पेय उद्योग में व्हिस्की, वोदका, रम. और जिन जैसी पश्चिमी शैली की शराब के प्रभुत्व के कारण पारंपरिक शराब का विकास नहीं हुआ है, लेकिन पारंपरिक पेय पदार्थ विविध संस्कृतियों और स्थानीय उपज के बारे में अद्भुत जानकारी देते हैं। कुल मिलाकर भारत में पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों पेय पदार्थों के उत्पादन की भरमार है। साथ ही कई समुदायों की संस्कृति और सामाजिक जीवन में समृद्ध परंपरा के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।हर साल शराब से होने वाली मौतों में 28 फीसदी
अब शराब का भयावह, स्याह पक्ष लेकिन एक सच्ची तस्वीर भी देख लीजिए। हर साल शराब से होने वाली मौतों में 28 फीसदी मौतें नशे में वाहन चलाना, मारपीट करना और खुद को नुकसान पहुंचाने वाली घटनाओं की वजह से होती हैं, 21 फीसदी पाचन शक्ति में खराबी के कारण 19 फीसदी दिल की बीमारियों और बाकी मौतें। कैंसर, खतरनाक संक्रमण, मानसिक बीमारी एवं अन्य स्वास्थ्य कारणों से होती हैं। एक नजर आंकड़ों पर डालते हैं।1. 2019 में दुनिया भर में शराब के सेवन से हुईं 2.6 मिलियन मौतें
2. 2012 में सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों में से एक-तिहाई लोग नशे में गाड़ी चला रहे थे
3. नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक देश के लगभग 10 फ़ीसदी वयस्कों को शराब की लत है
4. लीवर में सिरोसिस के चलते होने वाली 60 फीसदी मौतों कारण शराब
5. घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न की घटनाओं में भी एक बड़ी वजह है शराब
6. ग्रामीण इलाकों में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाएं शराब पर पाबंदी की मांग करती हैं
शराब से संबंधित सड़क दुर्घटना में हुईं
अवैध और चीप लिकर का दुष्प्रभाव ज्यादातर गरीब और मजदूर वर्ग में देखने को मिलता है, क्योंकि आमदनी कम होना और सहजता से इसकी उपलब्धता इसका मुख्य कारण है, 2019 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि, शराब से संबंधित सड़क दुर्घटना में हुईं। कुल 2 लाख 98 हजार मौतों में से 1 लाख 56 हजार मौतें नशे में वाहन चलाने के दौरान हुईं। वहीं अन्य मौतों का कारण भी नशे में गिरना, डूबना, जलना, यौन उत्पीड़न, हिंसा और आत्महत्या है।हमारे इस प्रोग्राम का उद्देश्य शराब के सेवन को प्रोत्साहित करना नहीं बल्कि इसे लेकर वास्तविक चित्रण भर करना है और यही तस्वीर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्य देशों से समर्थित। वैश्विक शराब कार्य योजना 2022-2030 भी दिखाती है, जिसका मुख्य उद्देशय उत्पादन, सूचना प्रणाली, जागरूकता और गुणवत्ता है।
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