चीन ने बीते साल दिसंबर में तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने का एलान किया था। इस घोषणा के महज छह महीने बाद ही चीन सरकार ने इस बांध का निर्माण शुरू भी कर दिया है। चीन का कहना है कि यह उसका सबसे बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है, जो कि उसके पिछले बड़े प्रोजेक्ट थ्री गॉर्जेस डैम से कई गुना बड़ा है। इस परियोजना के जरिए चीन अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की बात कहता है, हालांकि इस प्रोजेक्ट को लेकर न सिर्फ तमाम विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है, बल्कि इसे लेकर अब दो देशों- भारत और बांग्लादेश में पानी की जरूरतों को लेकर भी चिंता पैदा हो गई है। इतना ही नहीं चीन के इस फैसले के बाद भारत सरकार कूटनीतिक रूप से भी सक्रिय हो गई है।
तिब्बत में क्यों बांध बनाने में जुटा चीन?
चीन की तरफ से तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की योजना कोई नई नहीं है। इसे लेकर चीन ने एलान भले ही दिसंबर 2024 में किया हो, लेकिन वह 2020 से ही तिब्बत में बांध बनाने की तैयारी कर रहा है। चीन का दावा है कि वह इस बांध का निर्माण इसलिए कर रहा है ताकि 2060 तक वह ऊर्जा पैदा करने के मामले में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सके और कार्बन न्यूट्रल देश का लक्ष्य हासिल कर सके। इसलिए वह तिब्बत में एक हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के जरिए ऊर्जा पैदावार को बढ़ावा देना चाहता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि प्रोजेक्ट के पीछे सिर्फ ऊर्जा जरूरत पूरी करने की बात सिर्फ बहाना है और चीन इसके जरिए कूटनीतिक लाभ लेने की फिराक में है।
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