अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापारिक नीति को तगड़ा झटका लगा है। अमेरिकी सीनेट ने 51–47 मतों से उस प्रस्ताव को पारित कर दिया, जिसके तहत ट्रंप द्वारा घोषित वैश्विक आयात शुल्क (ग्लोबल टैरिफ) को रद्द करने की मांग की गई थी। यह निर्णय ट्रंप प्रशासन के लिए दोहरी चुनौती लेकर आया, क्योंकि चार रिपब्लिकन सांसदों ने भी पार्टी लाइन तोड़कर डेमोक्रेट्स के साथ मतदान किया।
अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापारिक नीति को तगड़ा झटका लगा है। अमेरिकी सीनेट ने 51–47 मतों से उस प्रस्ताव को पारित कर दिया, जिसके तहत ट्रंप द्वारा घोषित वैश्विक आयात शुल्क (ग्लोबल टैरिफ) को रद्द करने की मांग की गई थी। यह निर्णय ट्रंप प्रशासन के लिए दोहरी चुनौती लेकर आया, क्योंकि चार रिपब्लिकन सांसदों ने भी पार्टी लाइन तोड़कर डेमोक्रेट्स के साथ मतदान किया। यह कदम न केवल अमेरिकी राजनीति में मतभेदों को उजागर करता है, बल्कि आने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले आर्थिक मोर्चे पर ट्रंप की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है।
दरअसल, ट्रंप ने इस वर्ष अप्रैल में “नेशनल इमरजेंसी” का हवाला देते हुए विश्व के सभी देशों से आने वाले आयात पर न्यूनतम 10 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की थी, जिसे उन्होंने “रिप्रोस्रोकल टैरिफ” बताया। उनका तर्क था कि इससे अमेरिकी उद्योगों को सुरक्षा मिलेगी, परंतु इसका उल्टा असर दिखाई दिया — घरेलू बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ीं, उपभोक्ता असंतुष्ट हुए और कृषि क्षेत्र पर भी इसका भार पड़ा। यही कारण रहा कि सीनेट में उनके अपने दल के कुछ सदस्य भी इस नीति के विरोध में उतर आए।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटनाक्रम ने वैश्विक व्यापार के भविष्य पर गहरी छाया डाल दी है। अमेरिका की यह आंतरिक राजनीतिक दरार संकेत देती है कि संरक्षणवादी नीतियां अब टिकाऊ नहीं रहीं। भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह स्थिति अवसर भी है और चेतावनी भी — अवसर इसलिए कि अमेरिका का बाजार खुलने की संभावना बढ़ी है, और चेतावनी इसलिए कि विश्व व्यापार संतुलन में नया अस्थिर दौर शुरू हो चुका है। ट्रंप की ‘टैरिफ पॉलिसी’ अब खुद अमेरिकी व्यवस्था में असहमति का प्रतीक बन चुकी है।
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