चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा बांध बना रहा है। इस बांध को लेकर जहां दुनिया भर के पर्यावरणविद् चिंता जता रहे हैं, तो वहीं भारत खुद इस बांध को लेकर टेंशन में है। भारत ने भी चीन को उसकी हैसियत बताने के लिए कमर कस ली है। भारत अब चीन की सीमा से सटे इलाकों तक एक रेल नेटवर्क बनाने जा रहा है। इससे हमारी सीमाएं सुरक्षित तो होंगी और दूसरी ओर चीन कभी पूर्वोत्तर की ओर आंख उठाने का दुस्साहस भी नहीं कर पाएगा। जानते हैं क्या है भारत का मेगाप्लान।
तिब्बत की टीस और ब्रह्मपुत्र नदी
चीन ने अपने कब्जे वाले तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। यह दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध होगा। चीन इस डैम को बनाने के लिए 167.8 बिलियन डॉलर खर्च करेगा। चीन इसलिए भी यहा बांध बना रहा है क्योंकि एक तो तिब्बत से भागकर आए दलाई लामा को भारत ने अरसे से शरण दे रखी है। चीन को भारत का तिब्बत के प्रति यह रवैया फूटी आंख भी नहीं सुहाता है। यही वजह है कि वह तिब्बत पर अपना हक जताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता है।
ब्रह्मपुत्र का 80 फीसदी पानी तो हम देते हैं
ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा चीन-नियंत्रित तिब्बत में स्थित है, लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी का 80% से अधिक जल भारत में बनता होता है। वहीं, दूसरी ओर तिब्बत में सालाना केवल 300 मिमी बारिश होती है, जबकि पूर्वोत्तर भारत में सालाना 2,300 मिमी से अधिक बारिश होती है। इसके अलावा, कई भारतीय सहायक नदियां और बर्फ से लदी नदियां ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को बढ़ाती हैं। इसके विशालकाय बनाने में भारत का योगदान ज्यादा है।
भारत का यह है मेगाप्लान, तिब्बत की टीस और बढ़ेगी
भारत का मेगाप्लान यह है कि उसने 2030 तक पूर्वोत्तर के सभी सात राज्यों को रेल से देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने का बड़ा लक्ष्य रखा है। इससे भारत की 22 किलोमीटर संकरा सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता कम हो जाएगी। यह कॉरिडोर बहुत ज़रूरी है, लेकिन खतरे से भी भरा है। इसे ' चिकन नेक ' भी कहा जाता है।
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