भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक संघर्ष केवल दक्षिण एशिया की राजनीति तक सीमित नहीं रहा। यह वैश्विक ताकतों की रणनीतियों का भी केंद्र रहा है, जिसमें अमेरिका का विशेष स्थान है।
भारत और पाकिस्तान के बीच इतिहासिक संघर्ष केवल दक्षिण एशिया की राजनीति तक सीमित नहीं रहा। यह वैश्विक ताकतों की रणनीतियों का भी केंद्र रहा है, जिसमें अमेरिका का विशेष स्थान है। डोनाल्ड ट्रंप के पाकिस्तान-हितैषी रवैये ने भारतीयों को हैरान किया, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़ बताते हैं कि यह नई नीति नहीं, बल्कि दशकों पुरानी अमेरिकी रणनीति का ही हिस्सा है।
पाकिस्तान: अमेरिका की ‘स्ट्रैटेजिक कार्ड’ नीति का केंद्र
अमेरिका की विदेश नीति में पाकिस्तान हमेशा कोई साधारण सहयोगी नहीं रहा, बल्कि एक ‘स्ट्रैटेजिक कार्ड’ के रूप में इस्तेमाल होता रहा है। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान को सोवियत प्रभाव से निपटने का जरिया माना। समय के साथ भारत के आर्थिक और सैन्य विकास ने अमेरिका के नजरिए में पाकिस्तान को एक आवश्यक संतुलनकारक बना दिया। यही कारण है कि राजनीतिक उथल-पुथल, सैन्य तख्तापलट और आतंकवाद के बावजूद पाकिस्तान से अमेरिकी रिश्ते कभी पूरी तरह टूटे नहीं।
ऐतिहासिक दस्तावेज़ बताते हैं—यह नीति नई नहीं
जून 1972 में RAW के संस्थापक आर.एन. काओ और तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ के बीच अमेरिका को लेकर हुई बातचीत से यह स्पष्ट हो गया था कि वॉशिंगटन ने भारत को रोकने के लिए पाकिस्तान पर लंबे समय से दांव लगाया हुआ था। नितिन गोखले जैसे जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्टों का मानना है कि ट्रंप के भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक कदम इस पुरानी नीति की निरंतरता हैं। अफगान युद्ध, आतंकवाद विरोधी अभियानों और दक्षिण एशियाई राजनीतिक समीकरणों में अमेरिका ने बार-बार वही रणनीति अपनाई है।
अमेरिका की कमजोरी क्यों बन गया है पाकिस्तान?
पाकिस्तान आज भी अमेरिका के लिए एक ऐसी ‘जियो-पॉलिटिकल एडिक्शन’ की तरह है जिसे छोड़ना मुश्किल है। परमाणु हथियार, चीन से करीबी संबंध, अफगानिस्तान के समीप भू-स्थिति और इस्लामी दुनिया में उसकी भूमिका,ये सभी पहलू अमेरिका को पाकिस्तान से दूरी और नज़दीकी के बीच संतुलन बनाए रखने पर मजबूर करते हैं। इस रणनीतिक मजबूरी के कारण अमेरिका कई बार अपने मूल सिद्धांतों और नीतियों से समझौता करता दिखाई देता है।
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