क्रोध आना हर एक मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है , लेकिन क्रोध कभी -कभी हमारे दिलो-दिमाग पर इतना हावी हो जाता है कि लेने के देने पड़ जाते हैं और हम अपना ही नुकसान कर बैठते हैं। सच्चाई तो यह है कि गुस्से से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता है
अधिकांश तौर पर देखा जाता है कि जो लोग बात-बात पर गुस्सा करते हैं उनकी घर-परिवार, ऑफिस में अपने सहकर्मियों से ज्यादा नहीं बनती है क्योंकि गुस्सा उनकी नाक पर होता है और ऐसे लोग बात-बात पर भड़क उठते हैं। जब उनके मनचाहा काम नहीं होता है या विपरीत परिस्थितियां सामने आती हैं। खासकर युवा वर्ग में, जहां बात -बात पर आक्रोश का लावा फूट पड़ता है , बगैर यह सोचे समझे कि परिणाम क्या होगा। गुस्सा अहंकार का ही साकार रूप है। जिन व्यक्तियों में ईगो या फिर स्वयं को श्रेष्ठ समझने की भावना अधिक होती है ऐसे व्यक्ति गुस्से का जल्द ही शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा भीड़-भाड़ वाले शहरों में वायु प्रदूषण, शोर -शराबा , रहने के लिए जगह की कमी , हर काम के लिए कतार में लगकर प्रतीक्षा करना , कहीं जाते समय जाम में फंस जाना ये सब कारण भी कई बार गुस्से का रूप ले लेते हैं।
क्रोध की अग्नि शरीर पर बेहद बुरा असर डालती है । ह्रदय की धड़कन बढ़ जाने से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है , सांसों कि गति भी असामान्य हो जाती है। ज्यादा पसीना ,अल्सर और अपच जैसी शिकायतें भी गुस्से की वजह से पनप सकती हैं। क्रोध स्वास्थ्य का सबसे बड़ा दुश्मन है|
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