भारत-पाक के बीच तनाव एक संवेदनशील मुद्दा है, लेकिन इसका असर सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं रहता. आम लोगों, खासकर बॉर्डर क्षेत्रों में रहने वालों की मानसिक सेहत भी इस तनाव का शिकार हो सकती है. ऐसे समय में जागरूक रहना, सकारात्मक सोचना और एक्सपर्ट्स की सलाह को मानना बेहद जरूरी है.
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह तनाव अचानक बढ़ जाता है तो इसका असर आम लोगों के जीवन पर भी पड़ता है. खासकर बॉर्डर एरिया में रहने वाले लोगों के लिए यह मानसिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण समय होता है. डर, चिंता, हर समय खतरे का अहसास और जान का जोखिम. ये सारी बातें मिलकर लोगों की मानसिक सेहत पर बुरा असर डाल सकती हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे हालातों में लोगों में एंजाइटी डिप्रेशन और तनाव की स्थिति बढ़ सकती है.
तनाव और डर से बिगड़ सकती है मानसिक स्थिति
बॉर्डर पर रहने वाले लोग अक्सर गोलाबारी, सरहद पार से आने वाले खतरों और सेना की हलचल को करीब से देखते हैं. जब भी भारत-पाक तनाव बढ़ता है, इन इलाकों में डर का माहौल बन जाता है. रात में चैन की नींद नहीं आती, बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है, लोग अपने ही घरों में असुरक्षित महसूस करते हैं. यह डर धीरे-धीरे मानसिक बीमारियों का रूप ले सकता है.
बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित
बॉर्डर इलाकों में रहने वाले बच्चे और बुजुर्ग इस तनाव से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. बच्चों में डर बैठ जाता है, वे सामान्य गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पाते, पढ़ाई में मन नहीं लगता. वहीं बुजुर्गों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के साथ-साथ मानसिक चिंता भी घेर लेती है.
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