


बिहार की राजनीति वर्ष 2025 के विधानसभा चुनावों की ओर तेज़ी से बढ़ रही है। राज्य में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे हैं, जबकि महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वाम दल) उन्हें कड़ी टक्कर देने की तैयारी में है। राज्य की राजनीतिक स्थिति बहुस्तरीय बन चुकी है, जहां गठबंधन राजनीति, जन असंतोष और नए राजनीतिक खिलाड़ियों की सक्रियता ने चुनाव को बेहद रोचक बना दिया है।
नीतीश सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी
हाल ही में आए जनमत सर्वेक्षणों से संकेत मिलते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट आई है। लगभग 63% मतदाता सरकार से असंतुष्ट नजर आए, विशेषकर युवा और अति-पिछड़ा वर्ग में। लंबे समय से सत्ता में रहने और गठबंधन बदलने की राजनीति ने आम जनता के बीच उनके प्रति एक प्रकार की थकावट पैदा कर दी है। इसका सीधा फायदा विपक्षी दलों को मिलने की संभावना है।
महागठबंधन की चुनौती और नेतृत्व का सवाल
राजद के नेतृत्व में गठित महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया है। लालू प्रसाद यादव ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि "अबकी बार तेजस्वी को ही मुख्यमंत्री बनाना है"। हालांकि, कांग्रेस और अन्य घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान की आशंका बनी हुई है, जो चुनाव से पहले गठबंधन की एकजुटता को कमजोर कर सकती है।
नए राजनीतिक विकल्पों की दस्तक
इस बार चुनाव में आम आदमी पार्टी, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) जैसे विकल्प मैदान में हैं। ये दल खासकर शहरी और युवा मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश में हैं। हालांकि, इनका ग्रामीण इलाकों में असर सीमित है, लेकिन गठबंधन वोटों को काटने में इनकी भूमिका निर्णायक हो सकती है।
प्रशासनिक तैयारियाँ और चुनाव आयोग की सख्ती
चुनाव आयोग इस बार घर-घर जाकर वोटर लिस्ट की जांच करवाने पर विचार कर रहा है। इससे फर्जी वोटर हटाए जा सकते हैं और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित होगी। साथ ही, राज्य में सुरक्षा और लॉ एंड ऑर्डर को लेकर भी कड़े कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि 2025 के चुनाव काफी व्यवस्थित और गंभीर स्तर पर कराए जाएंगे।
राष्ट्रीय मुद्दों का स्थानीय असर
भारत-पाक तनाव, बेरोजगारी, महंगाई जैसे राष्ट्रीय मुद्दे भी बिहार चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। केंद्र की भाजपा सरकार इन मुद्दों के जरिए वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर सकती है। वहीं, विपक्ष इन मुद्दों को राज्य सरकार की असफलता के रूप में भी प्रस्तुत करेगा, जिससे राजनीतिक बहस को और धार मिलेगी।
बदलाव संभव लेकिन सुनिश्चित नहीं
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। एंटी-इनकंबेंसी और तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता बदलाव की संभावनाएं जरूर दर्शाती हैं, लेकिन सीट बंटवारे का विवाद, नए दलों की सेंध और नीतीश कुमार के प्रशासनिक अनुभव का प्रभाव परिणाम को उलझा सकता है। इसलिए, बदलाव की संभावनाएं ज़रूर हैं — परंतु स्थिति अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है