


मध्यप्रदेश की मध्य, पूर्व व पश्चिम क्षेत्र बिजली वितरण कंपनियों को 20 हजार से अधिक नए पद मिलेंगे। ऊर्जा विभाग ने इसका खांका खींच लिया है। इंतजार है तो बस कैबिनेट से मंजूरी मिलने का। इसके बाद इन पदों पर भर्तियां शुरू होंगी। इसका सीधा फायदा 1.80 करोड़ बिजली उपभोक्ताओं को होगा। इन अधिकारी, कर्मचारी की भर्तियां होने के बाद बिजली कटौती व बिलों में गड़बड़ी जैसी शिकायतों की सुनवाई में तेजी आएगी। कंपनियों को ये पद करीब 40 साल बाद मिलने जा रहे हैं, जो युवाओं को रोजगार देने में भी मदद करेंगे।
उपभोक्ता बढ़े, अधिकारी-कर्मचारी नहीं
वर्तमान में प्रदेश की बिजली व्यवस्था 3 कंपनियां संभाल रही हैं। इनमें करीब 1.80 करोड़ बिजली उपभेाक्ता है, इनमें से 1.25 करोड़ घरेलू उपभोक्ता हैं। कंपनियों को हर महीने करीब 5 हजार करोड़ का राजस्व मिलता है, जिसमें 3 हजार करोड़ आम उपभोक्ता देते हैं और 2 हजार करोड़ रुपए सरकार की सब्सिडी होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन उपभोक्ताओं की कई समस्याएं और काम होते हैं, जो कम से कम समय में पूरे नहीं होते। सूत्रों के मुताबिक यह बातमुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के संज्ञान में आई तो उन्होंने कहा कि जब उपभोक्ता बढ़ रहे हैं तो अधिकारी, कर्मचारियों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़नी चाहिए, इसमें कोई आपत्ति नहीं है। इसके बाद ही ऊर्जा विभाग ने नए ओएस सेटअप का खांका खींचा है।
कर्मचारी भी बंटे, लेकिन नए पदों का सृजन नहीं
प्रदेश में 1956 से मप्र विद्युत मंडल बिजली वितरण से जुड़े काम देख रहा था। 2000 में जब छत्तीसगढ़ अलग हुआ तो राज्य विद्युत मंडल अस्तित्व में आया। क्षेत्रफल की दृष्टि से बिजली आपूर्ति व्यवस्था के लिए तत्कालीन सरकार ने जून 2002 में बिजली कंपनियों का गठन किया और जुलाई 2005 में इन कंपनियों ने पूरी तरह काम संभाला। तब ऑर्गनाइजेशन स्ट्रक्चर (ओएस) बने और उसी में स्वीकृत पद पहले दोनों प्रदेशों में फिर मप्र की बिजली कंपनियों में विभाजित किए गए।