परिवर्तिनी एकादशी का महत्व और व्रत कथा – जानिए पूरी कहानी
भाद्रपद माह की दूसरी और आखिरी एकादशी परिवर्तिनी एकादशी है, जो कि आज यानी 3 सितंबर को मनाई जा रही है। परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी, पार्श्व एकादशी, डोल गयारस और जयंती एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
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Richa Gupta
Created AT: 03 सितंबर 2025
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भाद्रपद माह की दूसरी और आखिरी एकादशी परिवर्तिनी एकादशी है, जो कि आज यानी 3 सितंबर को मनाई जा रही है। परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी, पार्श्व एकादशी, डोल गयारस और जयंती एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ जितने पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, यह एकादशी जीवन के संकटों से मुक्ति दिलाने और सुख-समृद्धि के लिए काफी लाभकारी मानी गई है।


परिवर्तिनी एकादशी के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करना बहुत पुण्यदायी माना गया है। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करता है, उसे इस कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस कथा का पाठ किए बिना परिवर्तिनी एकादशी का पूर्ण फल नहीं मिलता है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं परिवर्तिनी एकादशी की कथा।


परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा


परिवर्तिनी एकादशी की पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में पांडव के सबसे भाई बड़े धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत के बारे में पूछा।तब भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को ब्रह्मा जी के नारद मुनि को सुनाई गई एक कथा के बारे में बताया। एक बार नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से पूछा कि भाद्रपद की एकादशी को भगवान विष्णु के किस स्वरूप की आराधना की जाती है। ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बताया कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान हृषिकेश की उपासना होती है।


ब्रह्मा जी ने बताया कि सूर्यवंश में मान्धाता नाम का एक महा प्रतापी राजर्षि हुआ करता था। उसके राज्य में सभी सुखी जीवन जीते थे। एक बार कर्म फल के कारण उस राजा राज्य में तीन सालों तक अकाल पड़ा। प्रजा अकाल से परेशान होकर राजा के पास पहुंची और प्रजा के निवेदन पर मान्धाता अकाल का कारण जानने निकल पड़े। इसी दौरान उनकी मुलाकात अंगिरा ऋषि से हुई और उन्होंने अपनी समस्या बताकर उनसे उसका और उपाय कारण जानना चाहा।


अंगिरा ऋषि ने राजा को बताया कि सत्य युग में सिर्फ ब्राह्मण ही तपस्या कर सकते हैं लेकिन तुम्हारे राज्य में एक शुद्र भी तपस्या कर रहा है। मान्धाता ने कहा मैं तपस्या करने के लिए उसे दंड नहीं दे सकता हूं। तब अंगिरा ऋषि ने राजा को भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। इसके बाद मान्धाता अपने राज्य में लौट आए और अपनी प्रजा के साथ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत किया। इस एकादशी के फलस्वरूप राज्य में वर्षा होने लगी और सभी समस्याओं का अंत हो गया। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि परिवर्तिनी या पद्मा एकादशी का व्रत रखने और इसकी कथा सुनने से ही सभी प्रकार के पाप दूर हो जाते हैं।


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