हिंदू पंचांग के आधार पर मार्ग शीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव जयंती मनाई जाती है और इस दिन को कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भैरव की साधना विशेष प्रकार से की जाती है। भगवान शिव से हुई काल भैरव की उत्पत्ति हुई है और इनकी पूजा रात्रि के समय की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि भैरव जयंती पर काल भैरव की पूजा अर्चना करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और भूत-प्रेत व नकारात्मक ऊर्जाएं दूर रहती हैं।
कौन हैं कालभैरव ?
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण की अष्टमी तिथि को मध्याह्न में भगवान शिव के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी जिन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है। भैरव का अर्थ होता है भय को हर के जगत की रक्षा करने वाला। ऐसा भी मान्यता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव, शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है। इनकी शक्ति का नाम है 'भैरवी गिरिजा ',जो अपने उपासकों की अभीष्ट दायिनी हैं। इस दिन इनके दो रूप है पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध है तो वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक है।
उपासना करने का फल
शिव पुराण में कहा गया है कि ''भैरवः पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहितारूशिवमायया।'' अर्थात भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं लेकिन अज्ञानी मनुष्य शिव की माया से ही मोहित रहते हैं। नंदीश्वर भी कहते हैं कि जो शिव भक्त शंकर के भैरव रूप की आराधना नित्य प्रति करता है उसके लाखों जन्मों में किए हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। इनके स्मरण और दर्शन मात्र से ही प्राणी के सब दुःख दूर होकर वह निर्मल हो जाता है। मान्यता है कि इनके भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता। काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है। इनकी पूजा-आराधना से घर में नकारात्मक शक्तियां,जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता बल्कि इनकी उपासना से मनुष्य का आत्मविश्वास बढ़ता है।
पूजाविधि
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण की अष्टमी तिथि को प्रातः स्नान आदि करने के पश्चात व्रत का संकल्प लें। इसके बाद काल भैरव के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। काल भैरव को हल्दी या कुमकुम का तिलक लगाकर इमरती, पान, नारियल आदि चीजों का भोग लगाएं। इसके बाद चौमुखी दीपक जलाकर आरती करें। रात के समय काल भैरव के मंदिर जाकर धूप, दीपक जलाने के साथ काली उड़द, सरसों के तेल से पूजा करने के बाद भैरव चालीसा, शिव चालीसा व कालभैरवाष्टक का पाठ करें।कालिका पुराण के अनुसार भैरव जी का वाहन श्वान है इसलिए विशेष रूप से इस दिन काले कुत्ते को मीठी चीजें खिलाने से भैरव की कृपा मिलती है।
मंत्र-
ॐ कालभैरवाय नम:।।
ॐ भयहरणं च भैरव:।।
ॐ भ्रं कालभैरवाय फट्।।
ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।।
Comments (0)