महाशिवरात्रि को शिव और शक्ति के मिलन की रात्रि कहा जाता है। सवाल है इसका मतलब क्या है? दरअसल, भारतीय आध्यात्मिक परंपरा तंत्र दर्शन से जुड़ी हुई है। इसलिए इस मिलन का अर्थ केवल एक दैवीय मिलनभर नहीं, बल्कि इससे गहरा और प्रतीकात्मक है, जो सृष्टि की मूल ऊर्जा, संतुलन और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। इसलिए महाशिवरात्रि का संदेश मानवता के लिए बहुत व्यापक है। शिव और शक्ति का दार्शनिक अर्थ है कि शिव हमारी चेतना है यानी शुद्ध अस्तित्व का प्रतीक है। शिव तत्व को पुरुष तत्व या मैसकुलिन एनर्जी भी कहते हैं, जबकि शक्ति, सृजनात्मक ऊर्जा और गतिशीलता का प्रतीक है। इसे इसकी गतिशील या फैमिनिन एनर्जी भी कहते हैं। जब कहा जाता है कि महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन की रात्रि है तो इसका अर्थ यही है कि शिवरात्रि की महारात्रि में ध्यान, साधना और आत्मबोध करना चाहिए। महाशिवरात्रि का समय वही काल है जब व्यक्ति अपने अंदर के शिव यानी चेतना और शक्ति यानी ऊर्जा का संतुलन कर सकता है।
शिव, आत्मा के और शक्ति, प्राण शक्ति या वाइटल एनर्जी का आधार हैं। महाशिवरात्रि की रात शिव भक्तों को सोना नहीं चाहिए। रात्रिभर जागरण करके भगवान शिव का ध्यान लगाना चाहिए। महाशिवरात्रि को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। इसलिए इस दिन को सृष्टि का संतुलन दिवस भी माना जाता है, क्योंकि शिव यानी पुरुष तत्व और शक्ति या प्राकृतिक तत्व के मिलन का प्रतीक था शिव और पार्वती का मिलन। इसी से ही सृष्टि का संतुलन स्थापित हुआ। यह मिलन प्रेम, त्याग और भक्ति का प्रतीक है। तंत्र परंपरा में शिवरात्रि को कुंडलनी जागरण की महारात्रि माना जाता है। कुंडलनी शक्ति हमारे मूलाधार चक्र में सुप्त अवस्था में रहती है, जो कि साधना के बल पर यह सहस्रार चक्र यानी मस्तिष्क में स्थित शिव तत्व से मिलती है। इससे समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि का दिन अध्यात्म का महान दिन है।
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