हिंदू संस्कृति में सावन का महीना वैसे ही विशेष धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व का होता है, उसमें भी अमावस्या एवं पूर्णिमा तिथियां अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं कल्याणकारी मानी जाती हैं। आकाश में चन्द्रमा की पूर्ण अनुपस्थिति अथवा महीने की सबसे काली रात को अमावस्या के रूप में जाना जाता है। अमावस्या तिथि को वर्ष के सबसे महत्वपूर्ण समय में से जरूरी समय माना जाता है। पूर्णिमा की तरह ही अमावस्या तिथियां भी वर्ष में 12 ही होती हैं। सनातन धर्म में यह तिथि पूर्वजों और देवताओं से जुड़ी होती है। अमावस्या पितृ दोष या कालसर्प दोष जैसे बड़े और घातक दोषों से निवारण पाने के उद्देश्य से यज्ञ, अनुष्ठान, पूजन, अर्चन, वंदन, व्रत आदि करने के लिए बेहतर समय होता है। इसीलिए इस दिन स्नान, दान आदि का विशेष महत्व होता है।
सावन महीने की अमावस्या को ‘श्रावणी अमावस्या’ कहा जाता है। बरसात का मौसम होने के कारण इस समय पूरी पृथ्वी हरी-भरी और संतुष्ट हो जाती है। प्रकृति में सर्वत्र फैली हरियाली संपूर्ण सृष्टि को सुंदर और मनोहारी बना देती है। यही कारण है कि सावन की अमावस्या को ‘हरियाली अमावस्या’ भी कहा जाता है।
हरियाली अमावस्या के व्रत में पर्यावरण संरक्षण का सारगर्भित संदेश अंतर्निहित है। गौरतलब है कि प्राचीन काल से ही इस दिन पौधे लगाने एवं उनका पूजन, वंदन आदि करने की परंपरा रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारी संस्कृति में आरंभ से ही पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण को संरक्षित करने की दृष्टि से ही पेड़-पौधों में ईश्वरीय रूपों को प्रतिबिंबित किया और उनकी पूजादि का विधान बनाया। भविष्य पुराण के अनुसार संतानहीन लोगों के लिए वृक्ष ही संतान होते हैं। इसलिए जो मनुष्य पौधे लगाते हैं, उनके लौकिक-पारलौकिक कार्य वृक्ष ही करते हैं। वहीं, नारद पुराण के अनुसार इस दिन देवपूजा के अतिरिक्त पौधरोपण करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
धर्मग्रंथों के अनुसार अच्छी सेहत पाने के किए नीम का पौधा लगाना चाहिए। संतान के लिए केले का पौधा, सुख-शांति और समृद्धि पाने के लिए तुलसी का और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए आंवले का पौधा लगाना चाहिए। पीपल लगाने से पितृदोष दूर होता है तथा लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। बरगद का पौधा लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। शिवजी और गणेशजी का प्रिय वृक्ष सभी रोगों का नाश करता है। इनके अतिरिक्त अशोक के पौधे लगाने से व्यक्ति का जीवन शोकमुक्त होता है, जबकि अर्जुन, नारियल एवं बरगद के पौधे लगाने से जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
हरियाली अमावस्या के व्रत में पर्यावरण संरक्षण का सारगर्भित संदेश अंतर्निहित है। गौरतलब है कि प्राचीन काल से ही इस दिन पौधे लगाने एवं उनका पूजन, वंदन आदि करने की परंपरा रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारी संस्कृति में आरंभ से ही पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण विषय रहा है।
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