उज्जैन मध्य प्रदेश का एक पवित्र शहर, जो अपने धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व के लिए प्रसिद्ध है। शहर में स्थित नवग्रह मंदिर, ज्योतिष और खगोल विज्ञान में रुचि रखने वाले लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर नवग्रह, यानी सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु को समर्पित है, और यहां पर इन ग्रहों की पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। नवग्रह मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। बताया जाता है कि लगभग दो हजार साल पहले इस मंदिर की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने की थी। यहां पर मुख्य शनिदेव की प्रतिमा के साथ ढय्या शनि की भी प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर का इतिहास
नवग्रह मंदिर का इतिहास प्राचीन है, और इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में हुआ था, मंदिर का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह नवग्रह के लिए समर्पित है, जो ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बताया जाता है कि विक्रम संवत का इतिहास भी इसी मंदिर से जुड़ा हुआ हैं। यही नहीं ये शनि मंदिर पहला मंदिर भी है, जहां शनिदेव शिव के रुप में विराजमान है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना के लिए शनिदेव पर तेल चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि यहां साढ़ेसाती और ढय्या की शांति के लिए शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है। बताया जाता है कि शनि अमावस्या के दिन यहां 5 क्विंटल तेल चढ़ता है। मंदिर प्रशासन को इसके लिए टंकी की व्यवस्था करनी पड़ती है।
शनिदेव के 3 स्वरुप
उज्जैन में शनिदेव के 3 स्वरुप है जिसमें से मुख्य स्वरुप शनिदेव शिवलिंग के स्वरुप में है उनके सामने दो दशा स्वरुप है बीच में साढ़ेसाती और पास वाले ढैय्या शनि शनि के पास गणेश विराजमान है, क्योंकि पूरी पृथ्वी पर शनिदेव की एकमात्र जगह दशाएं विराजमान है। शनिदेन के साथ भगवान नवग्रह शांति मंडल के रुप में विराजमान है। ग्रहों की अनिष्ट दशाओं का विशेष शांति पूजन यही होता है। राजा विक्रमादित्य अपनी दशा की कष्ट भोगने के बाद अंतिम दिन सपने में शनि महाराज के दर्शन करते हैं। शनिदेव का आज्ञानुसार उज्जैन से दक्षिण दिशा में त्रिवेणी संगम शिप्रा श्वेता और गंडकी नदी के किनारे विराजमान होकर भगवान नवगह का आव्हान करते हैं। नवग्रह साक्षात विराजमान रुद्र रुप में होकर शनिदेव राजा से बोलते है कि राजा हमने हमारी दशा का जितना कष्ट तुम्हें दिया इतना कष्ट ना ही किसी देव पुरुष या किसी मानव को दिया। दुनिया में सबसे ज्यादा कष्ट हमने आपको दिया हम आपकी परीक्षा से प्रसन्न हुए आप वरदान मांगे। राजा ने दोनों हाथ जोड़कर शनिदेव को दंडवत कर शनिदेव से बोलेते है कि प्रभु जितना कष्ट आपने हमें दिया इतना अन्य किसी मानव को न दें। जनकल्याण के लिए आपका कुछ ऐसा स्वरुप विराजमान हो जिसके दर्शन मात्र से अपनी दशा का आधा कष्ट समाप्त कर सकें शनिदेव हनुमान जी के स्वरुप में नवग्रह के साथ विराजमान हुए।
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