एमपी के छतरपुर जिले की बड़ा मलहरा तहसील से सिर्फ 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्रसिद्ध तीर्थस्थल भीमकुंड। यह स्थल प्राचीनकाल से ही ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों एवं साधकों की स्थली रही है। वर्तमान समय में यह स्थान धार्मिक पर्यटन एवं वैज्ञानिक शोध का केंद्र भी बना हुआ है। हरे-भरे जंगलों और चट्टनी पहाड़ियों के बीच बसा भीमकुंड एक प्राकृतिक जल कुंड है जिसका इतिहास बहुत पुराना है। यहां स्थित जल कुंड भू-वैज्ञानिकों के लिए भी कौतूहल का विषय है। दरअसल, यह कुंड अपने भीतर अतल गहराइयों को समेटे हुए हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि, भू-वैज्ञानिक इस जल कुंड में कई बार गोताखोरी करवा चुके हैं, लेकिन इस जल कुंड की थाह अभी तक कोई नहीं पा सका है।
भीम कुंड एक गुफा में स्थित है
भीम कुंड एक गुफा में स्थित है। जब आप सीढ़ियों से अंदर की तरफ जाते हैं, तो यहां पर कुंड के चारों तरफ पत्थर ही पत्थर दिखाई देते हैं। यहां लाइट भी कम होती है, लेकिन यहां का नजारा हर किसी का मन मोह लेता है। भीम कुंड के ठीक ऊपर बड़ा- सा कटाव है, जिससे सूर्य की किरणें कुंड के पानी पर पड़ती हैं। सूर्य की किरणों से इस जल में अनेक इंद्रधनुष उभर आते हैं।
विष्णु एवं माता लक्ष्मी जी का मंदिर
भीम कुंड के प्रवेश द्वार तक जाने वाली सीढ़ियों के ऊपरी सिरे पर चतुर्भुज विष्णु एवं माता लक्ष्मी जी का विशाल मंदिर बना हुआ है। भगवान विष्णु-माता लक्ष्मी जी के समीप एक और प्राचीन मंदिर है। इसके ठीक विपरीत दिशा में छोटे-छोटे तीन मंदिर बने हुए हैं, जिसमें क्रमश: लक्ष्मी-नृसिंह, राम दरबार और राधा-कृष्ण के मंदिर हैं। भीम कुंड एक ऐसा तीर्थ स्थल है, जो व्यक्ति को इस लोक से परलोक दोनों के आनंद की अनुभूति कराता है। कहा जाता है कि, इस कुंड का पानी बिल्कुल नीला और साफ है। ऐसा भी माना जाता है कि इस कुंड की गहराई में कुएं जैसे दो बड़े छिद्र हैं, एक में बहुत तेजी से पानी आता है और दूसरे से वापस चला जाता है।
महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के समय जब पांडवों को अज्ञातवास मिला था तब वे यहां के घने जंगलों से गुजर रहे थे। उसी समय द्रौपती को प्यास लगी, लेकिन यहां पानी का कोई स्त्रोत नहीं था। द्रौपती को व्याकुल देख धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाई नकुल से कहा कि वे पता लगा सकते हैं कि धरती में पानी कहां है? ऐसे में नकुल ने भाई की आज्ञा पर धरती से निकलने वाले पानी के स्त्रोत के बारे में पता किया, लेकिन समस्या ये थी कि पानी निकाला कैसे जाए। तभी गदाधारी भीम ने अपनी गदा उठाई और नकुल के बताए गए स्थान पर जोर से प्रहार किया। भीम की गदा के प्रहार से धरती में बहुत गहरा छेद हो गया और पानी दिखाई देने लगा, लेकिन कथा के अनुसार, भूमि की सतह से जल स्त्रोत तकरीबन 30 फीट नीचे था। इस स्थिति में युधिष्ठित ने अर्जुन से कहा कि, अब तुम्हें अपनी कौशल से जल तक पहुंच मार्ग बनाना होगा। ऐसे में अर्जुन ने अपने वाणों से जल स्त्रोत तक सीढ़ियां बनी दीं। धनुष की सीढ़ियों से द्रौपती जल स्त्रोत तक गईं। इस कुंड का निर्माण भीम की गदा से हुआ इसलिए इसे भीमकुंड के नाम से जाना जाता है।
भीमकुंड को नील कुंड या नारद कुंड भी कहा जाता है
इस कुंड को नील कुंड या नारद कुंड के नाम से भी जाना जाता है। बताते हैं कि, एक समय नारद जी आकाश से गुजर रहे थे, उसी समय उन्हें एक महिला और पुरुष घायल अवस्था में दिखाई दिए। उन्होंने वहीं आकर उनकी इस अवस्था का कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि वे संगीत के राग-रागिनी हैं। वे सभी सही हो सकते हैं, जब कोई संगीत में निपुण व्यक्ति उनके लिए सामगान गाए। नारद जी संगीत में पारंगत थे। उन्होंने उसी वक्त सामगान गाया जिसे सुनकर सापे देवतागण झूमने लगे। भगवान विष्णु भी सामगान सुनकर खुश हो गए और एक जल कुंड में परिवर्तित हो गए। भगवान विष्णु जी के रंग के जैसा ही इस कुंड का जल नीला हुआ तभी से इस नीलकुंड भी कहा जाने लगा।
भीमकुंड से जुड़े हैं ये अनोखे तथ्य
भीमकुंड को लेकर एक मान्यता है कि, इसमें स्नान करने से त्वचा संबंधी गंभीर से गंभीर बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। इसके अलावा कितनी भी प्यास लगी हो इसकी तीन बूंदें ही सारी प्यास बुझा देती है। इसके अलावा जब भी देश में कोई बड़ा संकट आने वाला होता है तब इस जलकुंड का जलस्तर बढ़ जाता है। यानी कि आपदा का संकेत यह कुंड पहले ही दे देता है।
रहस्य, जिससे आज तक पर्दा नहीं उठा
भीमकुंड का जल हमेशा साफ और स्वच्छ रहता है। इसमें काफी गहराई तक की चीजें साफ दिखती हैं और जब सूर्य की रोशनी इस कुंड पर आती है तब बहुत ही मनमोहक दृष्य दिखता है। इसके अलावा एक रहस्य यह भी है कि इस कुंड का जलस्तर कभी भी कम नहीं होता। यहां पर बने आश्रम जहां बहुत सारे बच्चे भी रहते हैं और आसपास के सारे क्षेत्र में यहीं से पानी की सप्लाई होती है। लेकिन पानी खत्म होना तो दूर, गर्मियों के समय में भी यहां का जलस्तर कभी कम नहीं होता है। यहां बने आश्रम में राज्य के कई हिस्सों से बच्चे शिक्षा लेने आते हैं।
Comments (0)