सर्वपितृ अमावस्या, जिसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है, पितृपक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है। यह वह अवसर है जब हम अपने उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं जिनकी तिथि अज्ञात हो या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश न हो पाया हो।
सर्वपितृ अमावस्या, जिसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है, पितृपक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है। यह वह अवसर है जब हम अपने उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं जिनकी तिथि अज्ञात हो या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश न हो पाया हो। शास्त्रों के अनुसार इस दिन का एक तर्पण समस्त पितरों तक पहुँचता है और वे प्रसन्न होकर अपनी संतान को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इसीलिए इसे “पितरों की तृप्ति का सार्वभौमिक दिवस” भी कहा जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि पितरों का आशीर्वाद घर-परिवार की समृद्धि, संतति की उन्नति और जीवन की हर सफलता का मूल है। सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्योदय से पहले स्नान, तिल-जल अर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण-भोजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन किया गया दान-पुण्य और तर्पण विशेष फलदायी माना जाता है, क्योंकि यह न केवल पितरों को संतुष्ट करता है बल्कि देवताओं और यमलोक तक भी पुण्य पहुँचाता है।
आज के संदर्भ में देखें तो सर्वपितृ अमावस्या केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपनी जड़ों को याद करने और पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि हमारी पहचान, संस्कार और उपलब्धियां केवल हमारी मेहनत का परिणाम नहीं, बल्कि पीढ़ियों से मिले आशीर्वाद की देन हैं। यही कारण है कि महालय अमावस्या हर वर्ष पूर्वजों के प्रति समर्पण और आत्मीय जुड़ाव का महापर्व बन जाती है।
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