सनातन परंपरा के विशाल आध्यात्मिक आकाश में शक्ति की साधना एक अद्वितीय और प्राचीन प्रवाह है। शाक्त दर्शन केवल किसी देवी की पूजा का भाव नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त ऊर्जा, चेतना और जीवन के रहस्यों को समझने का मार्ग है।
सनातन परंपरा के विशाल आध्यात्मिक आकाश में शक्ति की साधना एक अद्वितीय और प्राचीन प्रवाह है। शाक्त दर्शन केवल किसी देवी की पूजा का भाव नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त ऊर्जा, चेतना और जीवन के रहस्यों को समझने का मार्ग है। नवरात्रि का पर्व इसी शाक्त दर्शन की जीवित अभिव्यक्ति है, जहाँ नौ दिनों तक साधक शक्ति के विविध स्वरूपों का आवाहन करते हुए आत्मा को शुद्ध, दृढ़ और तेजस्वी बनाने का प्रयास करता है।
शक्ति : अस्तित्व का मूल तत्व
हिंदू दर्शन कहता है कि शिव बिना शक्ति शून्य हैं — “शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं”। इसका अर्थ है कि ब्रह्मांड का सृजन, पालन और संहार केवल तब संभव है जब शक्ति सक्रिय हो। शाक्त मत के अनुसार यही शक्ति आद्या, अनादि और अनंत है। वह कभी दुर्गा बनकर दुष्ट का संहार करती है, कभी लक्ष्मी बनकर समृद्धि देती है और कभी सरस्वती बनकर ज्ञान के द्वार खोलती है।
शाक्त दर्शन और आध्यात्मिक मृत्यु
शाक्त साधना का गहनतम आयाम है – आध्यात्मिक मृत्यु (Spiritual Death)। इसका अर्थ सांसारिक अहंकार, वासनाओं और सीमित पहचान का अंत है। जब साधक माँ की शरण में पूर्ण समर्पण करता है, तब उसके भीतर के अहं और मोह मरते हैं और एक नई चेतना का जन्म होता है। यही वास्तविक नवजीवन है, जहाँ साधक अपनी आत्मा को ब्रह्मांडीय शक्ति के साथ एकाकार करता है। नवरात्रि की रात्रियाँ प्रतीक हैं इसी आध्यात्मिक मृत्यु और पुनर्जन्म की यात्रा की—अंधकार से प्रकाश की ओर, सीमित से असीम की ओर।
हिंदू परंपरा में शक्ति की निरंतर धारा
वैदिक ऋचाओं से लेकर तंत्रागम ग्रंथों तक, शक्ति का दर्शन हिंदू परंपरा की नस-नस में प्रवाहित होता है। देवी सूक्त में ऋषिकाओं ने स्वयं को शक्ति का स्वरूप कहा—“अहम् राष्ट्री संगमनी वसूनाम्”। यही परंपरा आगे चलकर दुर्गा सप्तशती और शाक्त उपनिषदों में विकसित हुई। गाँवों से लेकर महानगरों तक नवरात्रि का उत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इस विश्वास का उत्सव है कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, शक्ति स्वयं अवतरित होकर धर्म की स्थापना करती है।
नवरात्रि : साधना, संकल्प और समर्पण
नवरात्रि केवल उत्सव नहीं, बल्कि साधना का अवसर है। नौ रातें प्रतीक हैं नौ आंतरिक अवरोधों को तोड़ने का, नौ शक्तियों को जगाने का और नौ स्तरों की आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक पहुँचने का। यह पर्व साधक को स्मरण कराता है कि शक्ति बाहर नहीं, भीतर है—उसे पहचानना, जागृत करना और माँ के चरणों में समर्पित करना ही नवरात्रि का वास्तविक उद्देश्य है।
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