दशहरे का पर्व केवल असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि इसमें छिपे रीति-रिवाज़ भी समाज को गहरे संदेश देते हैं। हर साल इस दिन शमी वृक्ष और शस्त्र पूजन की परंपरा निभाई जाती है। हिंदू मान्यता के अनुसार, शमी पूजन से समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है, जबकि शस्त्र पूजन धर्म की रक्षा और न्याय की विजय का संकल्प दिलाता है।
विजयदशमी यानी दशहरे का पर्व केवल असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि इसमें छिपे रीति-रिवाज़ भी समाज को गहरे संदेश देते हैं। हर साल इस दिन शमी वृक्ष और शस्त्र पूजन की परंपरा निभाई जाती है। हिंदू मान्यता के अनुसार, शमी पूजन से समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है, जबकि शस्त्र पूजन धर्म की रक्षा और न्याय की विजय का संकल्प दिलाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान अपने शस्त्र शमी वृक्ष में सुरक्षित रखे थे। विजय के दिन उन्हें वही शस्त्र दोबारा प्राप्त हुए और महाभारत युद्ध में उन्होंने विजय हासिल की। इसी वजह से शमी पूजन विजय, सौभाग्य और उन्नति का प्रतीक माना जाता है। दशहरे पर शमी की पत्तियां 'सोना' समझकर बांटी जाती हैं, जो समृद्धि का प्रतीक है।
वहीं, शस्त्र पूजन क्षत्रिय परंपरा का अहम हिस्सा है। मान्यता है कि शक्ति का प्रयोग केवल धर्म, न्याय और सुरक्षा के लिए होना चाहिए। इसलिए इस दिन तलवार, धनुष-बाण जैसे शस्त्रों से लेकर आज के समय में वाहन, औजार और आधुनिक उपकरणों तक का पूजन किया जाता है। इससे न सिर्फ कर्तव्यबोध प्रकट होता है बल्कि यह संदेश भी मिलता है कि साधनों का प्रयोग सदैव सही कार्यों के लिए होना चाहिए।
धार्मिक आचार्यों का कहना है कि दशहरे का पर्व हमें शक्ति और प्रकृति दोनों के संतुलन की शिक्षा देता है। शमी पूजन से पर्यावरण और वृक्षों के प्रति श्रद्धा जागृत होती है, वहीं शस्त्र पूजन साहस और पराक्रम का संकल्प दिलाता है। यही कारण है कि दशहरा भारतीय परंपरा में विजय, धर्म और समृद्धि का महापर्व बन चुका है।
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