सवर्ण, आदिवासी, दबंग या गरीबीरेखा निवासी इन तमाम शब्दों के अलावा और भी शब्द हैं जो गूंज रहे हैं हर एक सोशल मीडिया प्लेटफोर्म समेत सभी राजनैतिक पंडितों और समाज सुधार चिंतकों के अल्प ज्ञान और फरेबी चिंता में जैसे जाति, शक्ति, चमचागिरी, भक्ति और भी बहुत गैरज़रूरी शब्द लेकिन लुप्तप्राय हैं तो इंसान, मानवता, अधिकार, न्याय और समानता क्यूंकि इन सबकी परिभाषाएं भी बदलती रहती हैं अपने-अपने हितों के अनुसार लेकिन इस सबके बीच एक तस्वीर साफ़ दिखाई देती है हमारे वयस्क लोकतंत्र और तथाकथित समतामूलक समाज की जिसकी नुमाइश खूब की जाती है सरकारी दस्तावेजों और माननीय नेताओं के भाषणों में परन्तु “हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या” कहावत की तर्ज़ पर असली तस्वीर आये दिन सामने आती रहती है जैसे बीते दिनों सीधी जिले से आई खबर से आयी जिसमें एक व्यक्ति दुसरे युवक के चेहरे पर पेशाब करता दिख रहा है और ऐसी ख़बरें और घटनाएं हमें, हमारे देश और हमारी समृद्ध संस्कृति को शर्मसार करती हैं.
सीधी में टेढ़ी घटना
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