उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद कुछ राज्यों द्वारा नए खनन उपकर को लागू करने और लागत दबाव बढ़ने से घरेलू इस्पात उद्योग के लिए चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने यह बात कही है। उच्चतम न्यायालय ने खनिज अधिकारों तथा खनिज-युक्त भूमि पर कर लगाने की राज्यों के अधिकार को 14 अगस्त को बरकरार रखा था। साथ ही उन्हें एक अप्रैल, 2005 से रॉयल्टी की वापसी की मांग करने की अनुमति दी थी।
इक्रा ने एक बयान में कहा, इस कदम से पूरे क्षेत्र में परिचालन मुनाफा कम होगा जिससे प्राथमिक तथा माध्यमिक इस्पात उत्पादक दोनों प्रभावित होंगे। विभिन्न परिदृश्य में उपकर दरें 5-15 प्रतिशत के बीच हो सकती हैं, जिससे प्राथमिक इस्पात उत्पादकों का मुनाफा 0.6-1.8 प्रतिशत तक कम हो सकता है। द्वितीयक उत्पादकों को अधिक गंभीर प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है और उनके मुनाफे में 0.5 से -2.5 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।
इक्रा के अनुसार, उच्चतम न्यायालय के हाल के फैसले ने ओडिशा ग्रामीण बुनियादी ढांचे और सामाजिक-आर्थिक विकास अधिनियम, 2004 (ओआरआईएसईडी) पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया है, जो लौह अयस्क तथा कोयले पर 15 प्रतिशत उपकर की अनुमति देता है। यदि इसे पूरी तरह से लागू किया जाता है तो इसके परिणामस्वरूप लौह अयस्क की भूमि लागत में 11 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, जिसका सीधा असर घरेलू इस्पात इकाई की लागत क्षमता पर पड़ेगा।
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद कुछ राज्यों द्वारा नए खनन उपकर को लागू करने और लागत दबाव बढ़ने से घरेलू इस्पात उद्योग के लिए चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। रेटिंग एजेंसी इक्रा (ICRA) ने यह बात कही है।
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